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________________ छमस्थ काल और केबलोत्पति (केवल शान कल्याणक)---- प्रापका छनस्थ काल १ वर्ष रहा। इस वर्ष में समस्त अन्य विकल्पों का त्याग कर प्रभु योगास्तु रहे। धन घोर तप और अखण्ड मौन के द्वारा दीक्षा वन में जाकर धस्थ काल बिताया। पुन: उसी वन में उपवास धारण कर कदम्ब वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ-यात्म लीन साधु श्रेष्ठ ने माघ शुक्ला द्वितीया के दिन विशाखा नक्षत्र में सच्या समय में उन्हें जगयोतक केवलजान" हो गया । चतुरिणकाय देवों ने सपरिवार उपस्थित होकर प्रभु को अभ्यर्थना की । आत्म प्रकाश आदि अनेकों कार्य सम्पन्न किये। केवलज्ञान पूजा कर देव देवियाँ परम हर्ष को प्राप्त हुए । इन्द्र के आदेशानुसार कुवेर ने भगवान के दिव्योपदेश को व्यवस्था की । ६।। योजन के विस्तार में प्रर्थाल २६ कोस का व्यास वाला गोलाकार शमवशरण मण्डप तैयार किया। इसमें खाई, कोट, वापिका, ध्वजा, चैत्य आदि पाठ भूमियां तैयार कर मध्य में तीन काटनी युक्त १२ सभायों से परिवेष्टित मंध कुटी तयार की। गंध कुटी के मध्य रत्न जटित सुवर्ण सिंहासन पर अन्तरीक्ष भगवान विराजे । देव, विद्याधर, नर नारियाँ, संख्यात तिर्यञ्च भव्य प्राणियों से खचित सभा मण्डप में भगवान ने सप्त, तत्व, नव पदार्थ, छद्रव्य, पञ्चास्तिकाय आदि तत्वों का उपदेश दिया। समस्त तस्व उत्पाद, व्यय ध्रौव्यात्मक हैं । अनेकान्त सिद्धान्त का प्रतिपादन किया । ___ अापके समक्शरण में ६००० सामान्य केवली, १२०० पूर्वधारी, ३६२०० पाठक, ६७०० विपुलमती ज्ञानी, १०००० विक्रियाद्धिधारी, ५४०० अवधि ज्ञानी, ४२०० वादो, ७२००० कुल माधुगरण उनकी भक्ति में तत्पर थे। सधर्म आदि ६६ गराधर थे। बरसेना आदि १०६००० प्रायिकाएँ, द्विपष्ठ को प्रादि ले २ लाख श्रावक, ४ लाख श्राविकार थीं। इदका शासन यक्ष षण्मुख (कुमार) और मांधारी (विद्युत्माली) यक्षी थी। भव्य जीवों के प्रार्थना करने पर उन्होंने सम्पूर्ण आर्य खण्ड में विहार कर धर्मोपदेश दिया। अनेकों भव्यात्माओं ने व्रत नियम धारण किये । सर्वत्र सदाचार और शिष्टाचार का साम्राज्य छा गया तब भगवान चम्मापुरी में पधारे। १ हजार वर्ष पर्यन्त यहाँ धम्बूि वर्षरा कर भव्य रूपी शस्यों को फलित किया । योग निरोध----- प्रायुष्य का एक मास शेष रहने पर प्रभु ने देशना देना बन्द कर [ १६३
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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