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________________ निष्क्रमण कल्याणक यौवन पूर्ण शक्ति और प्रभाव के साथ आया, परन्तु वासुपूज्य कुमार को तनिक भी प्रभावित नहीं किया। उन्होंने अनादि काल से चले प्राये जन्म मरण के फेर को जड़ से उखाड़ फेंकने का निश्चय किया.। द्वादशानुप्रेक्षानों का चिन्तन किया। इसी समय लोकान्तिक देवषियों ने आकर उनके वैराग्य की पुष्टी की । अनुमोदना कर अपने ब्रह्मलोक में चले गये । काल लब्धि पाकर वे कर्म शत्रुओं का उन्मूलन करने को कटिबद्ध हो गये । चतुणिकाय देव दिव्य विमान-पालकी लेकर प्राये । प्रथम उनका अभिषेक किया वस्त्रालंकार से विभूषित किया और पुनः शिविका में प्रारूढ़ कर मनोहर नाम के वन में ले गये । प्रात्मीयजनों को आश्वासन दे स्वयं बुद्ध कुमार ने "नमः सिद्धेभ्यः" उच्चारण कर जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली, पञ्चमुष्ठी लौंच कर दिगम्बर हो गये । फाल्गुन कृारणा चतुर्दशी के दिन विशाखा नक्षत्र में संध्या के समय दो दिन के उपवास की प्रतीज्ञा लेकर मौन से ध्यानारूद्ध हो गये। पारण...... दो दिन का योग पूर्ण हुआ। मुनिश्वर आहार की इच्छा से पारणा के लिए चर्या पथ से वन के बाहर प्राये । महानगर का राजा सुन्दर (सुरेन्द्रनाथ) आज विशेष भक्ति से द्वारापेक्षा को सपत्नीक द्वार पर खड़ा था। प्रातः से उसकी दायीं आँख और भुजा फड़क रही थी, मन उल्लास से भरा था। रानी भी प्रसन्न चित्त उत्तम पात्र के पधारने की प्राशा में हषित थी। "याशी भावना यस्य फलं भवति तादृशं" के अनुसार प्रभ वासुपूज्य मुनिराज ईर्या पथ शुद्धि पूर्वक शनैः शनैः उसके द्वार पर प्रा खड़े हुए। हे स्वामिन् ! अत्र-पत्र, तिष्ठ-तिष्ठ, नमोऽस्तु नमोऽस्तु बोलकर सम्यक् विधिवत् पाहार को प्रा ह्वान किया । नवधा भक्ति से, उत्तम, प्रामुक, शुद्ध क्षीरान से त्रिकरण मुद्धि पूर्वक पारणा कराया। दाता, पात्र, विधि की विशेषता से उसके प्रांगन में आश्चर्यकारी, सर्वोत्तम रत्नों की वर्षा प्रारम्भ हुयी तथा अन्य भी पञ्चाश्चर्य हुए । प्रभु, पुनः वन में लौट गये । कठिनतम तप तपने लगे। नानाविध नियम, व्रत, उपवासों द्वारा कर्मों को चूर-बूर करने लगे । कर्म भी विचारे जान लेकर भाग खड़े हुए। १६२
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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