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________________ ishyaiwwwdesimaan गये । वर्षा हर समय लाभ दायक है । निदाघ काल में वर्षे तो प्राणियों को विशेष सुखद होती है। इसी प्रकार धर्म विस्मृत युग में भगवान को माघ कृष्णा अमावश्या के दिन श्रवण नक्षत्र में शाम के समय केवलज्ञान भास्कर उदित हमा। लोकालोकावभासी पूर्ण ज्ञान को पाकर भगवान अनन्त चतुष्टय रुप अन्तरङ्ग और समवशरणादि वाह्म लक्ष्मी के नायक हो गये । समवसरण -- कुवर ने इन्द्र की आज्ञानुसार ७ योजन अर्थात् २८ कोस प्रमाण विस्तार वाला प्रति रमणीय, निरुपम सभा मडप रचा । द्वादश सभात्रों-गरणों से परिवेष्टित गंधकुटी में श्री प्रभु शोभित हुए । उभय धर्म का दिव्य उपदेश हुमा । नाना देशों में बिहार किया। उनके समवशरण में कुन्थु आदि ७७ गणधर थे, १३११ चौदह पूर्वी, ४८२०० पाठक, ६००० अवधि ज्ञानी, ६५०० केवली, ११००० विक्रिद्धि के धारी, ६००० मनः पर्यय ज्ञानी, ५००० मुख्य वादी थे । इस प्रकार सब १४००० मुनिराज उनकी सेवा करते थे। 'धारणा' प्रमुख गरिमनी को प्रादि लेकर १ लाख बीस हजार प्रायिकाएँ थीं। दो लाख श्रावक और ४ लाख श्वाविकाएं उनकी पूजा करती थीं। असंख्य देव-देवियाँ और संख्यात तिर्थञ्च ने धर्मोपदेश श्रवण कर मथा योग्य व्रतादि धारण किये थे । भगवान ने अपनी दिव्य वारसी से समस्त प्रार्य खण्ड को अभिसिंचित किया। योग निरोध.. प्रायु का १ मास शेष रहने पर देशना बन्द हो गयी । समवशरण विघटित हो गया । प्रभु श्री सम्भेद गिरी की संकुट (संवल) कूट पर पा विराजे । इनके जिन शासन प्रवर्द्धक यक्ष कुमार (ईश्वर) और यक्षी गौरी (गोमधकी) यी । ये भी अपने-अपने स्थान पर चले गये । निरन्तर देव विद्याधरादि इनकी पूजा करते रहे। १ हजार राजाओं के साथ प्रतिमा योग धारण कर खड़े हो गये । शुक्ल ध्यान के प्रबल प्रभाव से उन्होंने शेष अधातिया को को अशेष किया और श्रावण शुक्ला पूणिमा के दिन ८५ कर्म प्रकृतियों से रहित शुद्ध परमात्म दशा प्राप्त की...मुक्त हुए। १५६ }
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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