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________________ मोक्ष कल्याणक --- श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के दिन धनिष्ठा नक्षत्र में संध्या समय चतुणिकाय देवेन्द्र, देव-देवियों प्रादि संवल कूट पर प्राये । अग्नि कुमार देवों ने औपचारिक अग्नि संस्कार किया । सबों ने मोक्ष कल्याणक वृहद् पूजा, स्तुति कर महोत्सव मनाया। रत्न-दीपमालिका जलायी, नृत्य-संगीतादि किये और "हमें भी यही दशा प्राप्त हो" इस भावना के साथ अपने-अपने स्थान पर चले गये । पुनः मनुज-विद्याधर, श्रावकश्राविकाओं ने नाना मनोहर स्तोत्रों से स्तुति कर अर्चना को, मोदक चढ़ाया । अंष्ट-द्रव्यों से पूजा कर पुण्यार्जन किया । विशेष....... : . . . इनके समय में प्रथम अर्द्धचक्री नारायण हा यह प्रथम भव में विश्वनन्दी था, वहाँ मुनि हो निदान बंध कर महाशुक्र विमान में १६ सागर प्रायु लेकर देव हुप्रा । पुनः जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के सुरम्पदेश की पोदनपुर नगरी में महाराज प्रजापति की प्रिया मृगावती से त्रिपृष्ट नाम का पुत्र हया अपने बल पराक्रम से तीन खण्डों को विजय कर यह प्रथम नारायण प्रसिद्ध हुना। इनका बड़ा भाई विजय बलभद्र था । इनका ८० धनुष ऊँचा शरीर और ८४ लाख वर्ष की आयु थी । अश्वग्रीव को मारकर श्रिखण्डाधिपति बना । त्रिपृष्ठ के बनुष, शङ्क, चक्र दंड, तलवार, पाक्ति और गदा ये ७ रत्न थे । विजय बलभद्र के गदा, रत्नमाला, हल और मुसल ये चार रत्न थे। श्रिपृष्ठ वाहवास में रौद्रध्यान से मरण कर ७३ नरक मया और बलभद्र समस्त प्रारम्भ-परिग्रह त्याग मुनि हो मोक्ष पचारे | एक साथ राज्यादि कर अन्त में दोनों ही विपरीत दशा को प्राप्त हुए । हे भव्यों ! मोह को धिक्कार है । अपने जीवन को त्यागमय बनायो । बिना सम्यक् तप किये सच्चा सुख नहीं मिल सकता । अतः यथाशक्ति संप करना चाहिए । - Prapt" - चिह्न -. [ १५७
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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