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________________ जिन पूजा, व्रत, उपवास आदि शुभ कार्यों को करो जिससे अशुभ कमों का बल नष्ट होकर शुभ कर्मों की विपाक शक्ति बढ़ेगी।" पतिभक्ति परायणा रानी का शोक कुछ हलका हुआ, विवेक जाया और क्रमश: पुनः धर्म-ध्यान में तत्पर हो गई। अब पहले की अपेक्षा अधिक पात्रदानादि शुभ क्रियायें करने लगी। एक दिन श्रीषरण महाराज अपनी प्रिया श्रीकान्ता सहित वन विहार करने गये 1 पुष्य योग से तपोधन मुनीन्द्र का दर्शन हुमा । धर्मोपदेश श्रवण कर राजा ने "प्रभो मुझे भी यह दिगम्बर रूप धारण करने का अवसर मिलेगा?' प्रश्न किया। श्री गुरु ने कहा, "हे भब्धः, तेरे मन में पुत्र प्राप्ति की तीन अभिलाषा है इसके पूर्ण होने पर तुम गृह त्याग करोगे । तुम्हारी पत्नी ने एक गर्भवती युवती का कष्ट देखकर पूर्वभव में "मुझे यौवनकाल में संतान न हो" यह निदान बांधा था ! वह कर्म अब निवृत्त होने वाला है तुम अष्टाह्निका व्रत और पुजा विधान करो । दम्पत्ति वर्ग ने विधिवत् व्रत धारण किया । सहर्ष घर लौटे । पिरोहित की परामर्शानुसार रत्नमयी जिननिम्छ प्रतिष्ठा करायी। दोनों ने पंचामृताभिषेक कर गंधोदक से स्नान किया प्रति सम्पुर्ण अंगों में लगाया । सिद्धचक्र विधान पूजा कर प्रभूत पुण्यार्जन और अशुभ कर्म प्रक्षालन किया । रात्रि के पिछले पहर में रानी ने हाथी, सिंह, चन्द्र और लक्ष्मी ये ४ स्वप्न देखे, इसी समय गर्भाधान किया । कुछ ही महीनों बाद गर्भ के चिह्न प्रकट हए । लज्जाशील रानी की दासियों से यह समाचार सुन राजा अति प्रसन्न हुए। उन्हें अनेकों वस्त्राभूषण दास में दिये । धीरे-धीरे नवमास पूर्ण हए । पूर्व दिशा जैसे सूर्य को जन्म देती है उसी प्रकार श्रीकान्ता ने धर्मप्रकाशी पुत्र रत्ल उत्पन्न किया । राजा ने परमानन्द से पूत्र जन्मोत्सव के साथ उसका श्री वर्मा नाम रक्खा । दोज मयंक सम पूत्र वृद्धि को प्राप्त हमा। एक दिन राजा वनमाली से सूचना पाते ही शिबंकर धन में श्रीप्रम जिनराज के दर्शनों को गया। तीन प्रदक्षिणा दे धर्मोपदेश श्रवण कर वहीं श्री वर्मा को राज्य दे दिगम्बर दीक्षा धारण कर घोर तपोलीन हो केवली हो पोष कर्मों को ध्वस्त कर मुक्त हुए । श्री वर्मा ने भी प्राष्टालिक विशेष पूजा को । पूणिमा के दिन अपने कुछ पारिवारिक लोकों के साथ सौध (महल) की छत पर बैठे
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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