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________________ Nimila m jaardhinionNTRIB000manda r mer पुण्यशाली पुत्र का जन्म हुआ। बालक की कान्ति से पूरा कमरा प्रकाश से जग-मगा उठा । देवियों द्वारा जलाये रत्नदीप मन्द हो गये । उस दीपमालिका का केवल मंगल-शुभाचार मात्र प्रयोजन रह गया । सिंहनाद घंटा, भेरी आदि की ध्वनी से जाग्रत हए देवगण अपने-अपने परिवार सहित इन्द्र को प्रागे कर बनारस नगरी में आये। उस समय शचि देवी प्रसूलिग्रह से बालक को लाई और इन्द्र ने हजार नेत्रों के द्वार से बाल प्रभ को देखा । यह दृश्य बड़ा ही रम्य था । ऐरावत हाथी पर भगवान को विराजमान किया । सपरिवार और सशैन्य इन्द्र भगवान को लेकर सुमेरू पर्वत पर मये और क्षीर सागर के जल से १००८ कलशों से जन्माभिषेक किया। सभी ने प्रानन्द से गंदोधक लगाया और पूनः लाकर बालक को माता की गोद में विराजमान किया । आपका नाम सूपार्श्वनाथ इन्द्र ने नियुक्त किया। इसी का समर्थन पिता और ज्योतिषियों ने दिया। माँ बाल चन्द्र को देख पानन्द सागर में निमग्न हो गई। इन्द्र ने प्रानन्द नाटक किया । महाराजा सुप्रतिष्ठ ने भी पुत्र जन्मोत्सव के उपलक्ष में नगर की शोभा कराई तथा अयाचकदान, अभयदान श्रादि दिये । इन्द्र बाल प्रभु के साथ कुछ देवों को बाल रूप धारण कर रहने का आदेश दे स्वयं सवैभव स्वर्ग चला गया । यद्यपि सुप्रतिष्ठ के घर में सुपार्श्व बाल के लालन-पालन, खेल-कूद के सभी साधन पर्याप्त थे। तो भी इन्द्र स्वर्ग से प्रतिदिन वस्त्रालकार, कल्प वृक्षों के फूलों की मालाएँ, अनोखे खिलौने प्रादि भेजता था। अंगूठे में स्थापित अमृत का पान करते हुए दोज के मयंक के समान बढ़ने लगे । बालक की क्रीड़ाएं किसका मन नहीं हरती ? फिर भावी भगवान की लोलाएँ तो जन-जन का मनोविनोद करेंगी ही । मृदु मुस्कान, चपलचाल, निरन्तर सुखद थी । क्रमशः बालावस्था पार कर कुमार वय में आये और पुनः यौवनावस्था को स्वीकार किया । राज्यकाल--- पाप्रभु के नौ हजार करोड़ सागर बीत जाने पर आपका जन्म हुना । आपकी प्रायु २० लाख पूर्व की थी और शरीर की ऊँचाई २०० धनुष प्रमाण थी । अपनी कान्ति से चन्द्रमा को भी लज्जित करते थे । पाँच लाख वर्ष कुमार काल के व्यतीत होने पर इन्हें पिता द्वारा राज्य प्राप्त हुआ। यह केवल दान देने और त्याग करने के लिए ही था ।
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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