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छम-छम वर्षा की फुहार पड रही थी संध्या फूल उठी । पूर्व दिशा मैं इन्द्रधनुष मुस्कुराने लगा । शनैः शनैः रात्रि का आगमन हुआ | रानी ने शैया का श्राश्रय लिया। भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की छठ का दिन था । इसी दिन रात्रि के पिछले प्रहर में महारानी पृथ्वीषेणा ने १६ स्वप्न देखे | माता मरुदेवी की भांति ही ये स्वप्न थे । प्रातः बन्दीजनों की विरदावली के साथ तन्द्रा रहित निद्रा भंग हुई। अन्य दिनों की अपेक्षा आज विशेष हर्षित, प्रफुल्ल चित्त थीं । अतिशीघ्र दैनिक क्रिया से निवृत्त हो राज्यसभा में पधारीं । महाराज ने भी बड़े प्रेम और श्रादर से महारानी को असत् देकर अपने पास बिठाया | नम्रता पूर्वक महादेवी ने रात्रि के स्वप्न सुनाये अन्त में सुख में हाथी ने प्रवेश किया यह भी बतलाया और किंचित मुखारविन्द नीचे किये हुए फल रूप उत्तर की प्रतीक्षा करने लगी । स्वप्नों के वृत्तान्त से सिद्ध मनोरथ राजा ने कहा, देवी, आपके स्वप्नों का फल त्रैलोक्य विजयी पुत्र होगा", वह धर्म तीर्थ का प्रवर्तन कर मोक्ष जायेगा । स्वप्न फल सुनकर महादेवी को कितना श्रानन्द हुआ क्या कोई कह सकता है ? मिश्री का मिठास खाने वाला ही अनुभव कर सकता है दूसरे को नहीं बता सकता। बस यही हाल था महारानी का । अतएव भादों सुदी ६ विशाखा नक्षत्र में, अग्निमित्र योग में वह पुण्यवान अहमिन्द्र माता के गर्भ में श्रा विराजमान हृश्रा, सीप में मुक्ता की भाँति सुख से ।
अन्म कल्याणक-
वर्षाकाल गया । क्रमश: शरद, शिशिर, हेमन्त और बसन्त ऋतु भी समाप्त हो चली | माता पृथ्वीसेना की गर्भ वृद्धि के धन, वैभव, बुद्धि, कला विज्ञान का पूर्ण विकास हुआ। जिसकी देवियाँ रक्षा करें भला उसका अभ्युदय क्यों न होगा ? षट् कुमारिकाओं ने गर्भ शोधना की छप्पन कुमारियाँ महर्निश दासी के समान सेवा में तत्पर श्रीं । स्वयं इन्द्र चि सहित जिसकी भक्ति में तन्मय हो उस माँ को कष्ट कहाँ ? न उदर वृद्धि हुयी न कृशकाय । अपितु तेजपुञ्ज सौन्दर्य छटा फूट पडी । नाना विनोदों, पहेलियों के उत्तर प्रत्युत्तर, तत्त्वचर्चा प्रश्नोत्तर पठनपाठन आदि में काल यापन हो रहा था । धीरे धीरे नत्र मास पूर्ण हो गये । श्री ही गई वह सुहानी प्रभप्सित घडी जिसकी प्रतीक्षा में राजा-रानी प्रजा सहित पलक पॉवड़े बिछाये समय यापन करते थे । जेठ सुदी द्वादशी के दिन अग्निमित्र योग में ऐरावत के समान उन्नत और महा
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