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________________ HowskoNIMAMMADUA53900RRUANJRDANARASWAMMea n Mwww (६) यशस्वान-अब संतान कुछ अधिक काल तक रहने से उसे आशीर्वाद देने का उपदेश दिया । माता-पिता कुछ समय के लिए पुत्र को सुखानुभव करने लगे इसलिए इस मनु का भी प्रयोगान होने लगा । (१०) अभिचन्द्र .....इन्होंने बच्चों को चन्द्रमा, चन्दा-मामा दिखलाकर खेल-खिलाने का उपदेश दिया। (११) चन्द्राभ ----पुत्र पालन-पोषण की विधि बताई। (१२) मरुदेव ----पर्वतारोहन, नदी स्नान, श्रादि विशेष-क्रियाएँ सिखाईं साथ ही बच्चों का सर्वानी विकास पूर्वक लालन-पालन आदि की प्रक्रिया बतलाई । (१३) प्रसेनजित .....इनके काल में युगलियाँ जरायु में लिपट कर पैदा होने लगे । इस समय प्रजा को जरायू पटल चीरकर संतान को बाहर निकालने की प्रक्रिया बताकर उन्हें स्वस्थ और सुखी किया। प्रसेन का अर्थ है । "मल' ममल से निकालने का उपाय बताने से इस मनु का नाम "प्रसेनजित' प्रसिद्ध हुआ। (१४) नाभि ..इनके काल में जन्म जात बच्चों के साथ नाल आने लगा उसे काटने का उपाय बताया इसीसे ये नाभिगज कहलाये। इनका शरीर ५२५ धनूष ऊंचा था । प्राय १कोटिपूर्व की थी। इस समय मेधों का घिरना, मयुरों का बोलना, नृत्य करना, चातक नृत्य, गर्जन, वर्षा आदि प्रारम्भ हो मई । कल्पवृक्ष समूल विलीन हो गये । चावल, यव, गेह, राले, सांवे, हरीक, कांगनी, मावा, कोदों, नीवार, तिल, मसूर, सरसों, जीरा, मूंग, उड़द, अरहर, चौला, चना, पावटा, कालथी, डाड़ा, इलायची, इत्यादि । १० दिन में पकने वाले धान्य कपास श्रादि बिना बोये उत्पन्न हो गए । परन्तु इनका उपयोग करना प्रजा को ज्ञात नहीं था । इसलिए भुख-प्यास से व्याकुल हो 'नाभि के पास उपस्थित हो निवेदन किया "हम किस प्रकार जीवन नोट :- “साढ़े तीन हाथ का एक धनुष । १८४ लक्ष वर्षों का १ पूर्वाङ्ग और ८४ पूर्वा का १ पूर्व होता है। १ पूर्व में एक करोड़ का गुहा करने से एक कोटि पूर्व *८४७०००.४८४०००७७-१ पूर्व ४१०००.. - एक कोटि पूर्व
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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