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________________ . समस्त जन-समूह आश्चर्य और भय से अभिभूत हो गया । वे सोचने लगे ये क्या सुवर्ण विमान है, या घड़े हैं, अथवा ग्रह हैं, कि वा राजा हैं ? हम पर क्या विपत्ति पा सकती है ? इनका भय निवारण करते हुए प्रथम मनु ने प्रजा को बोध प्रदान किया । हे सज्ज ! प्रायों, पाप डरो मत ३ ये भयंकर पदार्थ नहीं हैं न कोई नवीन ही उत्पन्न हुए हैं । अपित, अनादिकालीन हैं. अभी तक कल्पवृक्षों के तीन प्रकाश के कारण इनका तेज पा सा अब मन्द होने से दृष्टिगत होने लगे हैं ये चांद और सूर्य हैं । इस प्रकार प्रजा को निर्भय बनाया इसीसे इनका नाम (१) प्रथम मनु "प्रलिश्रुति' प्रथयात हुा । पुनः क्रमश: भोगभूमि का प्रलय होने लगा और मनुअों की उत्पत्ति भी। तथा हि... (२) सन्मति नक्षत्र ज्योति से उत्पन्न भय को दूर करने वाला दूसरा मनु। (३) क्षेमकर..... मृगादि (हिरमा-गाय भैसादि) शान्त स्वभाव को छोड़कर ऋर स्वभावी होने लगे उनसे रक्षण करने का उपदेश दिया। (४) क्षेमधर-भयंकर-भीति उत्पन्न करने वाले सिंह व्याघ्र आदि को वश में करने के लिए लाटी, काठी का प्रयोग करना सिखाया । (५) सीमकर-कल्पवृक्षों के फलादि स्वरूप-कम हो जाने से प्रजा परस्पर झगड़ा करने लगी.....मेरा-तेरा का भाव जाग्रत हो गया, तब कल्पवक्षों की सीमा निर्धारित कर विरोध निवारण किया । (६) सीमंधार..दिन प्रतिदिन कल्पवृक्षों की फलदान शक्ति कम होने लगी और परस्पर विरोध उग्रतर होने लगा । प्रतः इन्होने परकोटा वाउण्डो लगाने का उपाय घोषित कर साम्य स्थापित किया। (७) विमल वाहन.....इसकी पत्नी का नाम पद्मा" था । इसमें हाथी, घोड़े आदि को वश में कर अंकुश लगाम का प्रयोग सिम्बा कर सवारी करने का उपाय बताया। (4) चक्षुष्मान्---इन के काल में युगल संतान का क्षणमात्र मुखावलोकन कर माता-पिता मरने लगे । अर्थात् पुत्र-पुत्री का मुख देखने से उत्पन्न भय को दूर किया ।
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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