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प्रासादमाखने
ईटों के प्रासाद की दीवार प्रासाद के विस्तार के चौथा भाग .जतमी, पाषाण के पौर लकड़ी के प्रासाद की दीवार पांचवें भाग अथवा छठे भाग जितनी, सांधार प्रासाद की दीवार आठवें भाग, धातु और रत्न के प्रासाद की दीवार दसवें भाग जितनी मोटी बनावें ॥३१॥ अपराजित सूत्र १२६ में कहा है कि----
"मृदिष्टकाकर्मयुक्ता भित्ति पादां प्रकल्पयेत् । पञ्चमांशेऽथवा सा तु पष्ठांशे शैलजे भवेत् ।। दारुजे सप्तमांशे सान्धारे चाष्टमांशके।
धातुजे रत्नजे भित्तिः प्रासादे दशांशतः।।" मिट्टी और ईट के प्रसाद की दीवार चौथे भाग, पाषाण के प्रसाद की दीवार पांचवें अथवा छठे भाग, लकड़ी के प्रासाद की दीवार सातवें भाग, सान्धार जाति के प्रासाद को दीवार पाठवें भाग, धातु और रत्न के प्रासाद की दीवार दसवें भाग जितनी मोटी बना। अन्य प्रकार से मंडोवर की मोटाई
चतुरस्त्रीकृते क्षेत्रे दशभागैविभाजिते ।
भित्तिद्विभागकर्तव्या षड्भागं गर्भमन्दिरम् ।।३।। समचोरस प्रासाद की भूमि के दस भाग करें। इनमें से दो २ भाग की दीवार की मोटाई रक्खें । बाको छह भाग का गभारा बनार्थे ॥३२॥ शुभाशुभगर्भगृह
मध्ये गुगानं भद्राय मुमदं प्रतिभद्रकम् ।
फालनीयं गर्भगृह दोषदं गर्भमायतम् ॥३३॥ गर्भगृह चार काने वाला पोरस बनायें। उसमें भद्र, सुभद्र और प्रतिभद्र प्रादि फालना (खांचा ) बताना शुभ है । परन्तु लाचारस गभारा बनाने पर दोष होता है ॥३३॥ अपराजित पृच्छा सूत्र १२६ में कहा है कि
"एकद्वित्रिकमात्राभि-गेहं यदायतम् ।
यमचुल्ली तदा नाम मत गृहविनाशिका ||" यदि गर्भगृह एक, दो, तीन अंगुल भी सम्मुख लंबा हो तो यह समचुल्ली नाम का गर्भगृह कहा जाता है । यह स्वामी के गृह का विनाश कारक है।