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________________ तृतीयोऽध्यायः . संबचोरस शुभ गर्भगृह "दारजे वलभीनां तु प्रायतं च न दूषयेत् । प्रशस्तं सर्वकृत्येषु चतुरस्त्र' शुभप्रदम् ।।" पप० सू० १२६ दारुणादि ( लकड़ी के बने हुए) और वलभी (स्त्रीलिंग ) जाति के प्रासाद में गर्भगृह लंबा हो तो दोष नहीं लगता है। बाकी समस्त जाति के प्रासादों में समचौरस गर्भगृह बनाना, सब कार्यों में प्रशंसनीय और शुभ है। स्तम्भ और मडोवर का समन्वय---- कुम्भकेन समा कुम्भी स्तम्भप्रान्तेन तूदगमः । भरण्या भरणी शीर्षे कपोताल्या समं भवेत् ॥३४॥ पेटके' कूटच्छाचस्प कुर्यात् फ्टस्य पेटकम् । मंडोवर का कुम्भ और स्तंभ को कुम्भी, स्तंभ का मथाला और मंडोवर का उगम, स्तंभही गो और पंडोत र कारगी, मंडोवर वी कपोताली और स्तंभ को शिरावटी, में सब समसूत्र में रखने चाहिये पोर पाट के पेटा भाम तक राजा को नमन { छज्जा नमता). रखनी चाहिये। गर्भगृह के उदय का मान और गुम्बज-- सपइंशः सपादः स्यात् सार्थो गर्भस्य विस्तरात् ॥३५॥ बहदेवालये पट्ट-पेटान्तं हि विधोदयः । मजेदष्टभिरेकांशा कुम्भी स्तम्भोऽद्ध पञ्चभिः ॥३६॥ अद्धन भरणी शीर्ष-नेक पट्टस्तु सार्धकः । व्यासाचॆन करोटः स्याद् दर्दरी विषमा शुभा ॥३७॥ इति गमगृहोदयप्रमाणम् । गर्भगृह (गभारे ) के विस्तार में विस्तार का षष्ठांश युक्त सवाया अथवा हेढा गर्भगृह का उदय रखें। यह गमारे के तल से पाट के पेटा भाग तक गर्भगृह के उदय का तीन प्रकार का मान हा । ( अपराजित पृच्छा सू० १२८. श्लोक ५ में गभारे का उदय पौने दुगुणा तक रखने (1) 'अपस्तान" in
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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