SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ E तृतीयोऽध्यायः सामान्य मंडोवर शिरात्रटप द्गमो मची जग रूपान्ति वर्जयेत् । पद्रव्ये arge कथितं विश्वकर्मणा ||२८|| प्रकारान्तरे मंडोवर-२० 就熟 शिरावटी, उद्गम, मंत्री और जंघा, इन थरों में जो जो रूप बनायें जाते हैं, इनसे द्रव्य का अधिक व्यय होता है। इसलिये ये घर बिना रूप का बनायें ताकि खर्च कम हो । विश्वकर्माजी के कथनानुसार इससे पुण्य भी महान होता है | ||२८|| २७ भाग का मंडोवर इति सामान्यमंडोवरः । पीठापर्यन्तं सप्तविंशतिभाजिते । द्वादशानां सुरादीनां भागसंख्या क्रमेण तु ||२६|| स्वेदसार्ध-सा सार्द्धाभिस्त्रिभिः । साईमा भागेश्व सार्व' द्वयं शनिर्ममः || २० || इति प्रकारान्तरे मण्डोवरः । मंडोवर को मोटाइ पीठ के कार से छखा के ऊपर तक मंडोवर के उदय का सत्ताईस (२७) भाग करें। उनमें खुरा आदि बारह परों की भाग संख्या क्रमशः इस प्रकार है-एक भाग का खुरा, चार भाग का कुंभ, डेढ भाग का कलश, याचा भाग का अंतराल, डेठ माग का केवाल, डेढ भाग की मांची पाठ माग की अंधा, तीन भाग का उद्गम, डेढ भाग को भरखो, डेढ भाग का केवाल, रे आधा भाग का अंतराल और दाई भाग का छज्जा का उदय रक्खें, का निर्गम दो भाग में करें | ||२६|| ३०॥ ૨ पादशिनेट के पञ्च षडंशैः शैलदारुजे । सान्वारे चाष्टभिर्भाग' दशांशैर्धातुरत्नजे ||३१|| (१) । (२) भरली के ऊपर कितने प्रासादों में शिरावटी है और किनेक प्रासादों में केवाल देलने में पाता है । (३) उष्टशत मिति: ।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy