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________________ सृतीयोऽध्याय: समाळम में नागरी जंघा, लाटदेश में लाटी अंधा, दक्षिण देश में द्राविडो जंधा और सारे देश में बराटी जंघा प्रसिद्ध है। "उनमः पञ्चदशांशः कपिनासैरलङ्कृतः ।। भरणी वसुभागा तु शिरावटी पञ्चेव च । तदूर्व पञ्चभिः पट्ट कपोतालिवसुस्मृता ।। महाभरणी द्विसाधमन्तःपत्र पत्रिदशं कूटच्छाधकम् । निर्गम वसुभागे तु मेर्वादीनामतः शृशु ॥" पंद्रह भाग का उद्गम बनावें, एवं उसमें बन्दरों के रूप बना । पाठ भाग को भरपी पांच भाग को शिरावटो, उसके अपर पांच माग का पाट, मास भाग का केवाल, ढाई भाग का अंतरत्र और तेरह भाग का वा का उदय रखना चाहिये । TAIRATITENTIANE छन्ना का निर्मम याठ भाग रखो । EिA ETHYLभरका भेत मंडोवर मेरुमण्डोवरे मची भरपूऽष्टभागिका । पञ्चविंशतिका जछा उद्गमश्च त्रयोदश ॥२४॥ अष्टांशा भरणी शेषं पूर्व यत् कल्पयेत् सुधीः । सप्तभागा भवेन्मश्ची कूटच्याथस्य मस्तके ॥२५॥ पोडशांशा पुनर्जा भरणी सप्तभागिका । शिरावटी चतुर्भागा पट्टः स्यात् पञ्चमगिकः ॥२६॥ सूर्या शैः कूटच्छाद्य च सर्वकामफलप्रदम् । कुम्भकस्य युगांशेन स्थावराणां प्रवेशः ॥२७॥ . इति मेरुमंडोवरः। जिस मंडोवर में एकसे अधिक अंधा हो, उसको मेरुमंडोवर कहते हैं । उसमें भरणी के ऊपर खुर, कुम्भ, कलश, अंतराल और केवाल, में प्रथम के पांच पर नहीं बनायें जाते, किन्तु मची प्रादि सन पर बनाये जाते हैं । इसलिये प्रथम खुरा से लेकर भरणी RON भणपरा
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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