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________________ श्रासाइनरहने . . . .. ... .... ... . . .. ... .. . .. .... . . m har पाठ भाग का कलश, डाई भाग का अंतरपत्र, पाठ भाग का केवाल, नव भाग को मंचिका और पैंतीस भाग को जंषा करें। कोना और उपांग प्रादि कालमा को अंधा में भ्रमवाले स्तंभ बनावें, सब मुख्य कोने को जंघा में समचोरस स्तंभ बना, तथा गज, सिंह, परालक और मकर के रूपों से शोभायमान बनावें। n mommunic. i ....... ........... ......... "कर्णेषु च दिक्पालाष्टी प्राच्यादिषु प्रदक्षिणे ।। नाट्य शः पश्चिमे भने अन्धकेश्वरो दक्षिणे । चण्डिका' उत्तरे देव्यो दंष्ट्रासुविकृतामनाः ।। प्रतिरथे तस्य देव्यः कर्तध्याश्च दिशांपतेः । बारिमार्गे मुनीन्द्राश्च प्रलीनाः सपः साधने ।। गवाक्षाकारों भAषु कुनिर्ममभूषितः ।" कर्ण को जंघा में आठ दिक्पाल पूर्वादि दिशा के प्रदक्षिण कम से रगखें । नाट्य पा ( नटराज ) पश्चिम भद्र में, अंधकेश्वर दक्षिण भद्र में, विकराल मुख वाली और भयंकर दांत वाली चंडिका देवी उत्तर दिशा के भद्र में रखें । प्रतिरथ के भद्र में दिवालों की देवियां बनावें। बारिमार्ग में तपः साधना में लीन ऐसे ऋषियों के रूप बनावें। भद्र के गवाक्ष बाहर निकलता हुआ शोभायमान बनावें । H T HHALAal".'. चार प्रकार की अंधा "नागरी च तथा लाटी वैराठी द्राविडी तथा ।। मुद्धा तु नागरी ख्याता परिकर्मविजिता । स्त्रीयुग्मसंयुता लाटो बेराटी पत्रसकूला ॥ मञ्जरी बहुला कार्या जवा च द्राविडी सदा । नागरी मध्यदेशेषु लाटो लाई प्रकोत्तिता ॥ दाविडी दक्षिणे देशे वराटी . सर्वदेशमा ।" नागरी, लाटी, वैराटो और द्राविडी ये चार प्रकार की अंधा है। उनमें नागरी अंधा बिना किसी प्रकार के रूप को और शुद्ध सादी है। स्त्री युगल के रूप वाली लाटी अंधा है। कमल पत्रो वाली वैराटी अंधा है । बहुत मञ्जरी (शृङ्गों) वाली द्राविडी जया है । मध्यप्रदेश (१) पराजित पृचा सूत्र १२७ श्लोक २४ में विस रागे व शासनदेव्यः। पति पितराग देश के देवालय में परिका के स्थान पर उनकी शासन देवियों को रखना भीला है।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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