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द्वितीयोऽध्याय
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पूर्व और पश्चिम दिशाभिमुख वाले देवों का मुख दक्षिण और उत्तर दिशा में नहीं रखना चाहिमे । ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य, इन्द्र और कात्तिकेय, ये देव पूर्व और पश्चिम मुस्थ वाले हैं। इसलिये इनका मुख पूर्व प्रथया पश्चिम दिशा में रहे, इस प्रकार की स्थापना करनी चाहिये ॥३७॥
नगराभिमुखाः श्रेष्ठा मध्ये बाह्य च देवताः ।
गणेशो धनदो लक्ष्मीः पुरद्वारे सुखावहाः ॥३८॥ नगर के मध्य और बाहर स्थापित किये हुए देवों का मुख नगर के सम्मुख रखना श्रेष्ठ है। गणेश, कुबेर और लक्ष्मीदेवी, उन्हें नगर के दरवाजों पर स्थापित करना सुखदायक है ।।३।। दक्षिणाभिमुखदेव
विघ्नेशो भैरपश्चण्डी नकुलीशी ग्रहास्तथा ।
मातरो धनदश्चैत्र शुभा दक्षिणदिङ मुखाः ॥३६॥ गणेश, भैरव, चण्डी, नकुलीश, नवग्रह, मातृदेवता और कुबेर, इन देवों को दक्षिणाभिमुख स्थापित करें तो शुभफल देनेवाले हैं ॥३९।। विदिशाभिमुखदेव
नैऋत्याभिमुखः कार्यों हनुमान् वानरेश्वरः । अन्ये विदिङ्मुखा देवा न कर्तव्याः कदाचन ॥४०॥
इति देवानां दृष्टिदोषदिविभागः । वानरेश्वर हनुमानजी का मुख नैऋत्य दिशाभिमुख रक्खें । बाको दूसरे किसी भी देव का मुख विदिशा में कभी भी नहीं रखना चाहिये ॥४०॥ सूर्य प्रायतन
सूर्याद गणेशो विष्णुश्च चण्डी शम्भुः प्रदक्षिणे । भानोगृहे ग्रहास्तस्य गणा द्वादश मूतयः ॥४१॥
इति सूर्यायतनम् । सूर्य के पंचायतन देवों में मध्य में सूर्य, उसके प्रदक्षिरण क्रम से गणेश, विष्णु, मण्डीदेवो पौर महादेव को स्थापित करें। तथा नवग्रह और बारह गणों की मूर्तियां भी स्थापित करें ॥४॥