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________________ ૩૬ "जैनमुक्ता: समeatre याम्योत्तरकमैः स्थिताः । वामदक्षिणयोगेन कर्त्तव्य सर्वकामदम् ॥" अ० सूत्र १०८ जिनदेव के प्रासाद दक्षिण और उत्तर दिशा के द्वार वाले भी बनाये जाते हैं। उनकी नाली वाम दक्षिण योग से अर्थात् दक्षिण दिशा के सामने द्वार वाले अर्थात् दक्षिणाभिमुख प्रासाद को नाली बायीं ओर तथा उत्तर दिशा के सामने द्वार वाले ( उत्तराभिमुख ) प्रासाद की नाली दाहिनी ओर बनावें, अर्थात् उत्तर या दक्षिण दिशा के द्वार वाले प्रासाद की नाली पूर्व दिशा में रखें। यह सब इच्छापूर्ण करने वाली हैं। वास्तुमंजरी में भी कहा है कि "पूर्वापरास्यप्रासादे नाल सौम्ये प्रकारयेत् । तत्पूर्वे याम्यसोम्यास्ये मण्डपे वामदक्षिये ॥" पूर्व र पश्चिमाभिमुख प्रासाद की नाली उत्तर दिशा में, उत्तर और दक्षिणामुख प्रासाद की नाली पूर्व दिशा में रखें। मंडप में स्थापित किये देवों की नाली बायीं और दाहिनी र रखनी चाहिये । मण्डपस्थित देवों की नाली WALL प्रासादमवने मण्डपे ये स्थिता देवास्तेषां वामे च दक्षिणे । प्रणालं कारयेद् धीमान् जगत्यां च चतुर्दिशम् ||३६|| मंडप में जो देव स्थापित हों, उनके स्नान जल निकलने की नाली बायों और दाहिनी ओर रखना चाहिये, श्रर्थात् मूलनायक के बायीं ओर बैठे हुए देवों की माली बायीं ओर तथा दाहिनी ओर बैठे हुए देवों की नाली दाहिनी ओर बनायें । जगती के चारों दिशा में नाली बनावें ||३६|| "वामे वाम प्रकुर्वीत दक्षिणे दक्षिणं शुभम् । मण्डपादिषु प्रतिमा येषु युक्त्या विधीयते ॥" अप० सू० १०८ मंडप में जो देव बैठे हो, उनमें मूत्रनायक के बायीं ओर के देवों की नाली बायों घोर तथा दाहिनी घोर के देवों की नाली दाहिनी ओर बनाना शुभ है । पूर्व और पश्चिमाभिमुखदेव - पूर्वापरास्यदेवानां कुर्याभो दक्षिणोचरम् । ब्रह्मविष्णुशिवाकेंन्द्र गुहाः पूर्वापराङ्मुखाः ||३७||
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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