SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयोऽध्यायः ३५ minimilar ॥ देवों को प्रदक्षिणा एका चण्ख्या रवौ सप्त तिस्रो दद्याद् विनायके । चतस्रो वासुदेवस्य' शिवस्यार्धा प्रदक्षिणा ॥३३॥ ___ चंडीदेवी को एक, सूर्य को सात, गणेश को तीन, विष्णु को चार और महादेव को माधी प्रदक्षिणा देनी चाहिये ॥३३॥ अग्रतो जिनदेवस्य स्तोत्रमन्त्रार्चनादिकम् । कुर्यान दर्शयेत् पृष्ठं सम्सुखं द्वारलचन्नम् ।।३४।। जिनदेव के पागे स्तोत्र, मंत्र और पूजन प्रादि करें। परंतु बाहर निकलते समय अरनी पीठ नहीं दिक्षा, सम्मुख हो पिछले पैर चलकर द्वार का उल्लंघन करें ॥३४॥ बलमार्ग (पनाला) पूर्वापरसुरु द्वारे प्रथालं सुभमुसरे । इति शास्त्रविचारोऽय-मुसरास्या न देवताः ॥३५॥ पूर्व और पश्चिम दिशा के द्वार वाले प्रासाद को नाली ( पनाला) उत्तर दिशा में रखना शुभ है। उत्तर दिशा में (दक्षिणाभिमुख } किसी भी देव की स्थापना नहीं करें ऐसा शास्त्र का नियम है ॥ ३५॥ अपराजितपस्या में लोखा है कि "पूर्वापरं यदा द्वार प्रणालं चोत्तरे शुभम् । . प्रशस्त शिवलिङ्गाना-मिति शास्त्रार्थ निश्चयः ।।" सूत्र० १०८ पूर्व और पश्चिम दिशा के द्वार वाले प्रासाद की नाली उत्तर दिशा में रखना शुभ है। शिवलिंग के लिये सो यह नियम विशेष प्रशंसनीय है । ऐसा शास्त्र का नियम है। "अर्चानां मुखपूर्वाणां प्रणालं वामतः शुभम् । उत्तरास्या न विशेया अ रूपेण देवताः ॥ सूत्र० १०८ पदि देयों का मुख पूर्व दिशा के सामने हो तो उसकी नालो बायीं ओर रखना शुभ है। उत्तर दिशा में दक्षिणाभिमुख किसी भी देव की मूर्ति स्थापित नहीं करें। (१) विसुदेवस्य । (२) मुत्तरेशा ।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy