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________________ परिशिष्टे केसरीप्रसादः यह महानील प्रासाद का तलमान और स्वरूप इन्द्रनील प्रासाद के अनुसार जानें विशेष वह है कि - नन्दी के ऊपर से तिलक हटा करके उसके बदले श्रृंग रक्खें। ऐसा महानील प्रासाद सब देवों के लिये बनावें ||३८ ला 5, संख्याको ४, नंदी पर प्रत्यंग प्रतिरथे १६, नन्दी पर १२ और एक शिखर, कुल ५७ श्रृंग और तिलक ४ को । १५- भूषरप्रासाद- পकृক cm प्रा० २३ कार्य शृङ्ग च तिलकं रेखामध्ये प्रशस्यते । भूधरस्प समाख्यातः प्रासादो देववालयः || ३६॥ دی इति भूधरप्रासादः ॥ १ ॥ यह प्रसाद का मान मौर स्वरूप महानील प्रासाद के अनुसार जानें विशेष यह कि कोने के ऊपर एक अधिक चढ़ावें तो यह भूधर नाम का प्रासाद देवोंका स्थानरूप 1 होता है ||३६|| कोरणे । रंग संख्या--- कोसी, बाकी पूर्ववत् जानें तिलक ४ १६- रत्नकूट प्रासाद --- earer यथा प्रोक्तं द्विभागं वर्धयेत् पुनः । पूर्ववदलसंख्यायां भद्रपार्श्वे द्विनन्दिके ||४०|| द्विभागं वाह्यभित्तिश्च शेषं पूर्वप्रकल्पितम् । तलच्छन्दमिति ख्यात-मूर्ध्वमानयतः शृणु ॥ ४१ ॥ यह रत्नकूट प्रासाद का मान और स्वरूप भूधर प्रासाद के अनुसार जानें विशेष यह कि तल मानमें दो भाग बढ़ावें अर्थात् ठारह भाग करें। तथा भद्र के दोनों तरफ एक २ भाग की दूसरी नन्दी बनायें। और बाहर की दीवार दो भागकी रक्खें। बाकी सब पहले के अनुसार जानें। अब ऊर्ध्वमान सुनिये ||४०-४१ ।।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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