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________________ - चतुर्थोऽध्यायः श्रथवा द्वार की ऊंचाई का सात भाग करके ऊपर का एक भाग छोड़ दें, बाकी छह भाग के तीन भाग करें, उनमें से दो भाग की प्रतिमा और एक भाग का पबासन बनावें । द्वार की ऊंचाई का वह भाग करके ऊपर का एक भाग छोड़ दें, बाकी के पांच भाग का तीन भाग करें, उनमें से दो भाग की प्रतिमा और एक भाग का पबासन बनायें। यह खड़ी प्रतिमा का मान है । शयनासन प्रतिमा के पीठ का मान द्वारोदव के श्रद्ध मान का बनायें और बाकी प्रतिमा का मान जानें। अलशय्या वाली प्रतिमा के मानानुसार द्वार का विस्तार रक्खें। प्रर्थात् जलशय्यावाली प्रतिमा द्वार के विस्तार से अधिक मास की नहीं बनानी चाहिये। गर्भगृह का मान- 'चतुरस्त्रीकृते क्षेत्रे दशभागविभाजिते । द्विद्विभागेन भागं गर्ममन्दिरम् ||३|| प्रसाद की समोरस भूमि के दस भाग करें । उनमें से दो दो भाग की दोनों तरफ की दीवार और बाकी छह भाग का गर्भगृह बनायें ॥ ३ ॥ गर्भगृह के मान से मूर्तिका मान- तृतीर्थानि गर्भस्य प्रासादे प्रतिमोचमा । मध्यमा स्वदशांशोना पञ्चांशोना कनीयसी ॥४॥ गर्भगृह के विस्तार के तीसरे भाग की प्रतिमा बनाना उत्तम है। प्रतिमा का दसव भाग प्रतिमा के मान में से घटायें तो मध्यम मान की और पांचवां भाग घटादें तो कनिष्ठ मान की प्रतिभा माना जाता है ||४|| देवों का वष्टिस्थान--- आयभागैर्मजेद् सप्तमसप्तमे द्वार-मष्टमयूर्ध्वतस्त्यजेत् । दृष्टि-वृषे सिंहे ध्वजे शुभा ॥५॥ देहली के ऊपर से लेकर उत्तरंग के नीचे भाग तक के द्वार के दोष में आठ भाग करें। उनमें से ऊपर का आठवां भाग छोड़कर उसके नीचे का सातवां भाग का आठ भाग करें । (3) 'fafafara w'I' * कितने हो शिल्पी सात और आठ भाष के मध्य में मां को कोकी रहे, इस प्रकार प्रतिमा की दृष्टि रखते है, इससे भाय का मेल नहीं मिलता, जिसे उनकी मान्यता प्रमाखिक मानून नहीं होती । ६० १०
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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