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________________ अथ प्रासादमण्डने चतुर्थोऽध्यायः द्वारमान से मूत्ति और पासन का मान--- द्वारोच्छायोऽष्टनवथा भागमेकं परित्यजेत् । शेषे व्यंशे विभागार्चा त्र्यंशोना द्वारतोऽथवा ॥१॥ द्वार के उदय का पाठ अथवा नव भाग करें। उनमें से ऊपर का एक भाग छोड़ दें, बाकी जो सात अथवा पाठ भाग रहें, उनके तीन भाग करें। उनमें से दो भाग की मूर्ति पौर एक भाग ऊंचाई में पचासन (पीठिका ) बनावें अथवा दरवाजे का तीन भाग करके उसमें से दो भाग की मूर्ति बनावें ॥१॥ द्वार,ये तु द्वात्रिंशे तिथिशककलाशकः । ऊर्चाि आसनस्था तु मनुविश्वार्क भागतः ॥२॥ द्वार के जदय का बत्तीस भाग करें। उनमें से पंद्रह, चौदह अथवा सोलह भाग के मान की खड़ी मूत्ति बनावें । बैठी मूत्ति चौदह, तेरह अथवा बारह भाग की बनावें ॥२॥ क्षीरार्णव अ० ११० में लीखा है कि "द्वारं चाष्टविभक्तं च त्रिधा भक्तं च सप्तभिः । पोटमान भागमेक शेषं च प्रतिमा मुने! सप्तभागं भवेद् द्वारं षड्भागं च विषाकृतम् । द्विभाग प्रतिमामानं शेष पोई हि चौच्यते । द्वारं षड्भागिकं कुर्यात् त्रिधा पञ्च प्रकल्पयेत् । पीठश्चैकेन भागेन द्विभागं प्रतिमा भवेत् ।। एवमूर्ध्वप्रतिमा च पद्धे शयनासनं भवेत् । पीठमानं च नान्यत्र शेषस्थाने च निष्कलम् ॥ जलशय्याप्रमाणेन द्वारविस्तारसाधितम् । अन्यथा च यदा अचर्चा विस्तर नेव लक्षयेत् ॥" द्वार की ऊंचाई का पाठ भाग करके ऊपर का एक भाग छोड़ दें, बाकी के सात भाग का तीन भाग करें, उनमें से दो भाग की प्रतिमा और एक भाग को पोठ (पवासन } धमा। .
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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