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________________ प्रासादमण्डने उनमें से भी ऊपर का एक भाग छोड़कर के उसके नीचे का सातवां भाग मज प्राय है, उसमें सब देवों की दृष्टि रखनी चाहिये । अर्थात् द्वार के मध्य उदय का चौसठ भाग करके उनमें से पचपनवे भाग में दृष्टि रखें। अथवा पाठ भाग वाले सातवें भाग के वृष, सिंह और ध्वज आय में श्री दृष्टि का गाना है विशेष देवों का दृष्टिस्थान---- पठभागस्य पश्चाशे लक्ष्मीनारायणादिदृक् । शयनार्चेशलिङ्गानि द्वाराद्ध' न व्यतिक्रमेत् ॥६॥ द्वार के पाठ भागों में जो छठा भाग है, उसके आठ भाग करके पांचवें भाग में लक्ष्मीनारायण की दृष्टि रखरखें। शयनासन वाले देव और शिवलिङ्ग की दृष्टि द्वार के अर्धभाग में रक्खें, किन्तु द्वारार्ध का उल्लंघन करके दृष्टि नहीं रक्खें ॥६॥ देवों का पदस्थान--- पट्टाधो यक्षभूतायाः पट्टाये सर्वदेवताः । तदने बैष्णवं ब्रह्मा मध्ये लिङ्ग शिवस्य च ॥७॥ इति प्रतिमाप्रमाणदृष्टिपदस्थानम् । गर्भगृह के स्तंभ के ऊपर जो पाट' रखा जाता है, उसके नीचे यक्ष. भूत और नाग आदि को स्थापित करें। तथा दूसरे सब देव पाट के पागे स्थापित करें। उसके आगे वैष्णव और ब्रह्मा को और गर्भगृह के मध्य (ब्रह्मभाग ) में शिवलिंग को स्थापित करें 101 वत्थुसार पयरण ३ के मत से पदस्थान--- “गम्भगिहड्डपरशंसा जक्खा परमंसि देवया बीए । जिरगकिपहरवी तइए बंभु उत्थे शिवं पणमे ।।" गर्भगृह के बराबर दो भाग करें, उनमें से दीवार के तरफ के भाग के पांच भाग करें, इनमें दीवार वाले प्रथम भाग में यक्षको, दूसरे भाग में देवियों को, तीसरे भाग में जिनदेव, कृष्ण (बिष्णु ) और सूर्य को, चौथे भाग में ब्रह्मा को और पांचवें भाग में (गर्भगृह के मध्य भाग में ) शिवलिङ्ग को स्थापित करें। समरांगण सूत्रधार प्र०७० के मत से पदस्थान-- "भवते प्रासादगई दशधा पृष्ठभागतः । पिशाचरक्षोदनुजाः स्थाप्या .गन्धर्वगुह्यकाः ।। प्रादित्यचण्डिकाविष्णु-ब्रह्मशानाः पद कमात् ।।"
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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