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शक्ति बढ़ानी शुरू की, किन्तु पल्लवों के साथ युद्ध में मारा गया। उसकी मृत्यु के पश्चात् उत्पन्न उसका पुत्र जयसिंह जन्म के समय अनाथ और राज्यविहीन था, किन्तु वयस्क होते ही उसने ऐसा साहस, शौर्य और पराक्रम दिखाया कि मंग दुविनीत ने उसे अपनी छनच्छाया में ले लिया, उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया और पल्लवों के विरुद्ध युद्धों में उसको सहायता की। अन्ततः, वातापी (बदामी) को राजधानी बनाकर चालुक्य राज्य को सुदृद नौंव जमाने में जयसिंह सफल हुआ और विष्णुवर्धन, राजसिंह, रणपराक्रमांक-जैसे विस्द उसे प्राप्त हुए। बदामी के अतिरिक्त अल्लेम (अलक्तकनगर) और ऐहोल (ऐविल्ल या आर्यपुर) उसके राज्य के प्रसिद्ध नगर थे, और इन तीनों ही स्थानों में जैनों की अच्छी बस्ती और स्थिति थी जर्यासह की मृत्यु चण्डदण्ड पल्लय के साथ हुए युद्ध में हुई। तब दुर्मिनील गंग ने उसके युवापुत्र रपराग एरेय्व सत्याश्रय को प्रश्रय दिया। इसकी ओर से अण्डदण्ड पल्लव को भीषण युद्ध में मार डाला और रणसग को उसके पिता के सिंहासन पर पुनः प्रतिष्ठित किया। उस काल में भुजगेन्द्रान्च्य (नागजाति) के सेन्द्रवंश में 'तत्कुल अगन-चन्द्रमा' तथा अनेक युद्धों में विजय प्राप्त करनेवाला विजयशक्ति नाम का राजा था। उसका पुत्र. शौर्य-ौर्य-सत्त्व-गणसम्पन्न, सामन्तवन्दमौलि सजा... कुन्दशक्ति था, जिसका प्रिय पुत्र अद्वितीय-पुरुषाकार-सम्पन्न, अनेकरणविजयवीरपताकाग्रहणोद्धतकोर्ति तथा धर्म अर्थ-काम-प्रधान राजन् दुर्गशक्ति था। इस दुर्गशक्ति ने पुलिगेरे (लक्ष्मेश्वर) नामक नगर में शंख-जिनेन्द्र चैत्य का निर्माण कराके उसकी पूजादि तथा अपनी पुण्याभिवृद्धि के हेतु उक्त राजा सत्याश्रय के शासनकाल में पचास निवर्तन भूमि का दान दिया था । यह जैन राजा दुर्गशक्ति उक्त चालुक्य नरेश रणराग सत्याश्रम के प्रमुख सामन्तों में से था।
रणराग का पुत्र एवं उत्तराधिकारी चालुक्य नरेश पुलकेशी प्रथम सत्याश्रय बड़ा वीर, प्रतापी और योग्य शासक था। उसके राज्य में जैनधर्म का प्रभूत प्रचार था। वहाँ जैनगुरुओं का अबाध बिहार होता था और राजा के अनेक सामन्त, सरदार और राजकर्मचारी जैन थे। उस काल में रुद्रनील-सैन्द्रकवंश का गोण्ड नाम का मण्डलीक राजा था। उसका पुत्र अब-नय-विनय-सम्पन्न एवं समररसरसिक सिवार नाम का राजा था 1 सिवार का पुत्र अपने पराक्रम में रियों को उस्त करनेवाला, राम के भृत्य हनुमान्-जैसा अपने स्वामी (पुलकेशी) का अनुचर, धार्मिक सामियार था जो कुहुण्डी-विषय का शासक था। उक्त धर्मात्मा सामन्त राजा सामियार ने अक्तकनगर में त्रिभुवनतिलक नाम का जिनालय भक्तिपूर्वक निर्माण कराया था, जो देवराज इन्द्र के प्रासाद-जैसा भव्य, मनोहर, उत्तुंग एवं श्रेष्ट था। यह जिनालय उसने घालुकमनरेश की अनुमति से सम्भवतया उसके राज्य के वें वर्ष (542 ई.) में निमपित कराया था, और उसके लिए वैशाखी पूर्णिमा को. जिस दिन चन्द्रग्रहण था, स्वयं महाराज सत्याश्रय (एलकेशी प्र.) ने कनकोपल-वृशमूल-गण आम्नाय के सिद्धनन्दि मुनीश्वर
IDb :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलामा