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भने मिति अष्ट्र निष्ठित करायी थी, जो रूपशिल्प और मूर्तिविज्ञान की अद्वितीय कलाकृति है और अपनी मौलिकता, मनोज्ञ छवि, सुस्मित चीतराग, ध्यानस्थ मुद्रा, सादगी और विशालता में अप्रतिम है, तथा विश्व के आश्चर्यों में परिमाणित है। इस अल-क्षत्र-शिखामणि चामुण्डराय की भार्या अजितादेवी भी पतिपरायणा एवं धर्मपरायणा महिलारन थी और अपने पति के धर्मकार्यों में सोत्साह प्रेरक थी। इनका सुपुत्र जिनदेवन भी धर्मात्मा था और अजितसेन भट्टारक का ही शिष्य था। उसने भी श्रवणबेलगोल में एक भव्य पार्श्व-जिनालय बनवाया था। ऐसा लगता है कि राचमल्ल चतुर्थ के उत्तराधिकारी रक्कसमंग के राज्यारम्भ के पाँच-सात वर्ष के भीतर ही, लगभग 990 ई. में, इस महान कर्मवीर एवं धर्मवीर राजा चामुण्डराय का स्वर्गवास हो गया था। चामुण्डराय की छोटी बहन धर्मात्मा पुल्लव्ये ने विजयमंगलम् स्थान की चन्द्रनाथ बसदि में समाधिमरण किया था और उसकी पुण्यस्मृति में उक्त स्थान पर एक विषयका (निषिधि) निर्माण करायी गयी थी।
वीरांगना सावियध्वे-यह वीर महिलारत्न प्रसिद्ध एवं पराक्रमी वीर दायिक तथा उसकी धर्मपत्नी जाबच्चे की पुत्री थी, और धोर के पुत्र लोकविद्याधर अपरनाम उदयविद्याधर की भार्या थी। सम्भव है कि रक्कसगंग का भानजा एवं पोष्यपुत्र विद्याधर ही यह लोकविद्याधर हो। यह बीरबाला अपने पति के साथ युद्ध में गयी थी। और रणभूमि में युद्ध करते हुए ही उसने वीरगति पायी थी। श्रवणबेलगोल की बाहुबलि बसति के पूर्व की ओर एक पाषाण पर इस युद्धप्रिय महिला की वीरगति लेखांकित है। लेख के ऊपर एक प्रस्तरांकित दृश्य है जिसमें यह तीर मारी छोड़े पर सवार है और हाथ में तलवार उठाये हुए अपने सम्मुख एक गजारूढ़ योद्धा पर प्रहार करती चित्रित है। हाथी पर चढ़ा हुआ पुरुष भी इस वीरबाला पर जवाबी प्रहार कर रहा है। घटनास्थल का नाम बगेयूर लिखा है, जो सम्भवतया वही दुर्ग है जिसपर आक्रमण करके सेनापति चामुण्डसव में त्रिभुवनवीर को युद्ध में मारकर और गोविन्दर को दुर्ग में प्रविष्ट कराके वैरिकुलकालदण्मु' का विरुद प्राप्त किया था। लोकविद्याधर
और उसकी वीर पत्नी सावियञ्चे भी उस युद्ध में चामुण्डराय की ओर से सम्मिलित हुए लगते हैं। लेख में इस महिला-रत्न को रेवतीरानी-जैसी पक्की श्राविका, सीता-जैसी पतिव्रता, देवकी जैसी रूपवती, अरुन्धती-जैसी धर्मप्रिया और शासन-देवता-जैती जिनेन्द्रभक्त बताया है।
पेगडे हासम-स्कसगंग पेर्मनति का मन्त्री था। बेलूरु के 1022 ई. के शिलालेख में उसे शरणागत-वज्र-पंजर, रिपु-कंज-कुंजर, तन्त्र-रक्षामणि, मन्त्री-चिन्तामणि, राज्यभार-धुरन्धर इत्यादि कहा है। उसने अपने स्वामी के दीर्घ-जीवन की कामना के लिए, जिस स्थान में बह उस समय निवास कर रहा था, एक नवीन जिनालय बनवाया था, बलोरकट्ट के सरोवर की सीढ़ियाँ बनवायी थीं, एक बाँध का निर्माण
100 :: प्रमुख ऐतिहासिक जन पुरुष और महिलाएँ