SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . से मरते समय अपने स्वामी एवं भानजे राष्ट्रकूट इन्द्र चतुर्थ की रक्षा का भार उसे ही सौंपा था। अपनी शूरवीरता, साहस और पराक्रम के लिए उसने बड़ी ख्याति अर्जित की थी। राजादित्य को घायल करने में उसने आश्चर्यजनक हस्तकौशल दिखाया था, राच नामक महाबली शत्रु सामन्त के टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे, गोविन्दराज को करारी हार दी थी, जब चामुण्डराय युद्ध के लिए निकलता तो शत्रु लोग भयभीत खरहों की भांति शरण की खोज में दुबकते फिरते थे। दीपावली के दुन्दुभिनाद-जैसा उसके युद्ध के दोलों का स्व शत्रुदल में भय और नास उत्पन्न कर देता था। रोडग के युद्ध में वज्वलदेव को पराजित करने पर उसे 'सपरधुरन्धर' उपाधि मिली। गोनूर के युद्ध में मोलम्बों को पराजित करने पर 'वीरमार्तण्ड', उच्वंगी के दुर्ग में राजादित्य को छकाने पर 'रणरंगसिंह यागेयूर के दर्ग में त्रिभुवनवीर को.... मारने और मोविन्दार को उस किले में प्रविष्ट कराने के लिए "वैरिकुलकालदण्', तथा अन्य विविध युद्ध विजयों के उपलक्ष्य में भुजविक्रम', 'भष्टमारि, "प्रतिपक्षसक्षस', नोलम्बकुलान्तक', 'समरकेसरी', 'सुभटचूडामणि', "समर-परशुराम', आदि विरुद अन्हें प्राप्त हुए थे। उसके अन्य नाम गोम्मट, गोम्मटराय, राय और अण्ण थे। अपने धार्मिक एवं नैतिक चरित्र और कार्यकलापों के लिए उसे 'सम्यक्त्यरत्नाकर', शीचाभरण', 'सत्य-पुधिष्टिर', 'गुणरत्नभूषण', 'देवराज', 'गुणकाव' आदि सार्थक उपाधियाँ प्राप्त थीं। वह जिनेन्द्र भगवान का, स्वगुरु अजितसेमाचार्य का और अपनी स्नेहमयी जननी का परम भक्त था। 'चामुण्डराय पुराण' और 'चारित्रसार' जैसे महत्वपूर्ण एवं विशाल ग्रन्थों का प्रणेता भी यह था। इनमें से प्रथम कन्नड़ भाषा में है और इससं संस्कृत में। गोमट्टसार की वीरमार्तण्डी टीका (कन्नड) भी सामुण्डराय रचित मानी जाती है। कन्नड के महाकवि रम्न का वह आध प्रश्रयदाता था, जिसे राय में श्रेष्ठ कवि के साथ ही साथ अच्छा योद्धा और सेनानी भी बना दिया। चामुण्इसय की प्रेरणा से आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने अपने सुप्रसिद्ध गोम्मटसार, त्रिलोकसार आदि सिद्धान्त ग्रन्थों की रचना की थी। वह भी आचार्य अजितसेन के ही शिष्य थे। चामुण्डराय ने अनेक जिनमन्दिरों, मूर्तियों आदि का निर्माण, जीर्णोद्धार और प्रतिष्ठा करायी थी। प्रयणबेलगोल की चन्द्रागिरि पर स्वा-निर्मापित चामुण्डराय-वसति में इन्द्रनीलमणि की मनोज्ञ नेमिनाथ (गोम्मट-जिम) की प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी। यह मन्दिर उक्त स्थान के जिनालयों में सर्वाधिक सुन्दर समझा जाता है। विन्ध्यगिारे पर उसने त्यागद-ब्राह्मदेव नाम का सुन्दर मानस्तम्भ भी बनवाया था। चन्द्रगिरि के नीचे एक शिला यामुण्डरायशिला कहलाती है, जहाँ खड़े होकर राय ने सामने की विन्ध्यगिरि पर मन्त्रपूत शर-सन्धान किया था, जिसके फलस्वरूप गोम्मटेश बाहबलि की विशाल प्रतिमा प्रकट हुई थी, ऐसी अनुश्रुति है। वस्तुस: अपनी जननी काललदेवी की इच्छा पूरी करने के लिए चामुण्डराय ने 978 ई. में गोम्मटेश्वर कुक्कुटजिन-बाहुबलि की वह विश्व-विश्रुत गंग-कदम्ब-पलनव-चालुक्य :: 99
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy