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एवं श्रेष्ठ कवि थे। वह आचार्य धर्म से जैन थे, अद्भुत प्रतिभासम्पन्न थे और वल्लभराज कृष्ण-जैसे सम्राट् तथा उसके अनेक माण्डलिकों एवं सामन्तों द्वारा सम्मानित हुए थे। मारसिंह ने उन्हें बगियूर नाम का ग्राम भेंट किया था।
अन्तिम गंग राजे-मारसिंह के राज्य परित्याग के प्रायः साथ ही साथ राष्ट्रकूटों का सूर्य अस्तंगत हुआ और स्वयं गंगराज्य में भारी अव्यवस्था उत्पन्न हो गयी। दो-तीन वर्ष की बीक परान्त 977 6 में मारसिंह का छोटा भाई .. (लगभग डेढ़ सौ वर्ष बाद के एक शिलालेख में उसे मारसिंह का पुत्र लिखा है) राचमल्ल सत्यवाक्य चतुर्थ 'धर्मावतार' गंगराज्य का स्वामी हुआ और लगभग सात वर्ष तक शासन करता रहा। इस राजा के प्रथम वर्ष में ही पेम्गूर ग्राम की जिनबसदि के लिए श्रवणबेलगोल निवासी वीरसेन सिद्धान्तदेव के प्रशिष्य और गुणसेनपण्डित महारक के शिष्य अनन्तवीर्य गुरु को पेग्गूर ग्राम तथा अन्य भी कुछ भूमि का दान दिया गया था। श्रीपुरुष महाराज ( एक पूर्व गंगनरेश) द्वारा दिये गये पुराने दानपत्रों की भी पुष्टि की गयी थी। इसी राजा के शासनकाल में श्रवणबेलगोल की गोम्मटेश प्रतिमा प्रतिष्ठापित हुई। राचमल्ल चतुर्थ के पश्चात् 958 ई. में उसका भतीजा (गोविन्द या बासव का पुत्र) रक्कसगंग पेम्मर्मनडि राजा हुआ। उसने पतनोन्मुख गंगराज्य को बचाये रखने का यथाशक्ति प्रयत्न किया। इस राजा के गुरु द्रविड़संघी हेमसेन यादिराज के शिष्य श्रीविजयदेव थे। कन्नड कादम्बरी एवं छन्दाम्बुधि के रचयिता कन्नड भाषा के सुप्रसिद्ध जैन कवि नागवर्म इस राजा के आश्रित थे । रक्कसगंग ने राजधानी तलकाड में तथा अन्यत्र कई जिनमन्दिर बनवाये थे, बेलूर में एक सरोवर बनवाया था और दानादिक दिये थे। यह निस्सन्तान था, अतएव उलने अपनी दो भतीजियों और एक भानजे विद्याधर का पालन-पोषण किया था । रक्कसगंग की पुत्री चट्टलदेवी हुम्मच के सान्तर वंश के शिलालेखों में देवी की तरह पूजित हुई। सन् 1004 ई. के लगभग चोलों ने आक्रमण करके राजधानी तलकाड तथा गंगवाड़ी के बहुभाग पर अधिकार कर लिया। रक्कसगंग उसके पश्चात् भी लगभग बीस वर्ष जीवित रहा, और सम्भवतया बोलों के अधीन एक छोटे से उपराज्य या सामन्तवंश के रूप में गंग राजे फिर भी चलते रहे, क्योंकि रक्कसगंग के उपरान्त गंगराजा के रूप में नीतिमार्ग तृतीय राचमल्ल का नाम मिलता है, जिसके गुरु वज्रपाणि पण्डित थे; जैसा कि उसके 1040 ई. के शिलालेख से प्रकट है। उसके उपरान्त रक्कलगंग द्वितीय राजा हुआ। उसकी पुत्री चालुक्य सम्राट् सोमेश्वर प्रथम ( 1076-1126 ई.) की रानी थी। रक्कसगंग ह्नि के गुरु अनन्तवीर्य सिद्धान्तदेव थे । इस राजा का उत्तराधिकारी उसका छोटा भाई कलिगंग भी परम जैन था। वह होयसलों का सामन्त बन गया था और 1116 ई. में उसने चोलों को मैसूर प्रदेश से बाहर निकालकर अपने स्वामी विष्णुवर्धन होयसल को साम्राज्य निर्माण में अद्वितीय सहायता दी थी। उसका प्रधान सामन्त भुजबलगंग भी परम जैन था ।
गंग-कदम्ब-पल्लव- चालुक्य 97