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विद्यानन्द स्वामी का मक्ल था। उत्तरी अकार के चितूर तालुके में स्थित यल्लमलई पर्वत पर गुहामन्दिर बनवाकर उनमें उसने जिन-प्रतिमाएँ प्रतिष्टित करायीं । उसके स्वगुरु आर्यनन्दि थे जो बालचन्द्र के शिष्य थे। सम्भवतया यह अर्थनन्दि ही ज्वालमालिनी कल्प' नामक मन्त्रशास्त्र के रचयिता थे।
एरेयगंग नीतिमार्ग प्रथम रणविक्रम (858-70 ई.)-सचमल्ल के इस यशस्वी पुत्री एवं उत्तराधिकारी ने राष्ट्रकुद सम्राट् अमोघवर्ष प्रथम की पुत्री राजकुमारी चन्द्रबेलब्बा (अब्बलब्बा) के साथ अपने छोटे पुत्र भूतगेन्द्र-बुत्तरस-गणदतरंग का विवाह करके शक्तिशाली राष्ट्रकूटों को भी स्थायी मैत्री के सूत्र में बाँध लिया। राजकुमार भूतुग (बुतुग) ने पल्लवराज को लूटकर अपनी प्रतिष्ठा बनायी थी । कुडुलूर दानपत्र में इस गंगनरेश नीतिमार्ग प्रथम को परमपूज्य' अहंभारक के घरणकमलों का 'प्रमर' लिखा है, वहीं राजकुमार भूतुग को भी परमजैन लिखा है। शिलालेख जिस स्थान पर है उसके निकट ही राजन् नीतिमार्ग के समाधिमरण का प्रस्तरांकन है, जिसमें उसका स्वामिभक्त सेवक अगरय्य उसे संभाले हए बैठा है, और शोकमग्न राजकुमार सम्मुख खड़ा है। इस राजा ने अनेक युद्धों में वीरतापूर्वक विजय प्राप्त की बतायी जाती है। अब गंगनरेश राष्ट्रकूट सम्राटों के महासामन्त मात्र थे और देहाधिकतर अष्ट्रकूटों का MAHATETरने के लिए लड़े गये प्रतीत होते हैं।
राचमल्ल सत्यवाक्य द्वितीय (870-907 ई.) नीतिमार्ग की सालेखनापूर्वक मृत्यु के उपरान्त उसका ज्येष्ठ पुत्र रायमल्ल सत्यवास्य द्वित्तीय सजा हुआ और क्योंक वर निःसन्तान था, इसलिए उसने अपने अनुज बीर भूतुमेन्द्र को युवराज बनाया। इन दोनों भाइयों ने पल्लवों, पाण्डकों, बेंगि के चालुक्यों आदि के विरुद्ध अनेक युद्ध किये और प्रशंसनीय विजय प्राप्त की। इस काल में भूत्तुग कौमुभाड और पुन्नार का प्रान्तीय शासक भी रहा प्रतीत होता है। बिलियूर दानपत्र के अनुसार राजन् राचमल्ल सत्यवाक्य द्वि. ने अपने राज्य के 18वें वर्ष (887 ई.) में पेनेकडंग स्थान में स्वनिर्मित सत्यवाक्य-जिनालय के लिए शिवनन्दि-सिद्धान्त भट्टारक के शिष्य सर्वनन्दिदेन को बिलियूर (बेलूर) इलाके के बारह ग्राम प्रदान किये थे। राधमल्ल के जीवन में ही (900 ई. के लगभग) युवराज भूत्तुगेन्द्र की मृत्यु हो गयी थी, जिसके उपरान्त भूतुग का पुत्र एयरप्प गरेयगम-नीतिमार्ग युवराज हुआ और उसने अपने ताऊ 'श्रमणसंब-स्याद्वादाधारभूत' उक्त संचमाल सत्यवाक्य के साथ मिलकर पाषाणनिर्मित पेमेनडिबसदि मामक जिनालय के लिए कुमारसेन भष्ट्रारक को श्वेत स्वावल, घृत, निःशुल्क श्रम (वेगार) आदि का दान चुंगी आदि सर्वप्रकार के करों से मुक्त करके दिया था। राचमल्ल की मृत्यु के अद वहीं राजा हुआ।
एयरप्प एरेयगंग नीतिमार्ग द्वितीय, सत्यवाक्य महेन्द्रान्तक-907 से लगभग इस वर्ष राज्य किया। शक ११1 (909 ई.) में जब इस नरेश का राज्य
गंग कदप्त्र पल्लय-चालक्य :: पुई