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________________ अत्यन्त शक्तिशाली नरेश था। वह महान विजेता था और प्रायः सम्पूर्ण तमिलनाइ पर तथा दक्षिण भारत के अन्य अनेक भागों पर अधिकार करके उसने अपने राज्य को एक विशाल साम्राज्य बना दिया था। समुद्रों पर भी उसका प्रभुत्व था। राज्य में जैनधर्म की प्रवृत्ति थी और यह सम्राट् भी उसी का अनुयायी था । उसका भाई राजकुमार इल्लिवलवन ली दीक्षा लेकर जैनमुनि हो गया था। तमिल भाषा के सुप्रसिद्ध प्राचीन महाकाव्य शिलप्पदिकरम का रचयिता यही राजर्षि इल्लिक्लवन (इलंगों) था। औवे नाम की सुप्रसिद्ध प्राचीन तमिल कवयित्री भी ईसवी सन् के प्रारम्भ के लगभग हुई। विश्वास की जाती है, वह एक जैन राजकुमारी थी जो बाल-ब्रह्मचारिणी रही और अपनी निःस्वार्थ समाजसेवा, सुमधुर यानी और नीतिपूर्ण उपदेशों के लिए आज भी तमिल भाषाभाषियों के लिए 'माता औवे' (आर्यिका मौ) के रूप में स्मरणीय एवं पूजनीय बनी हुई हैं। खारथेल-विक्रम युग ::
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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