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________________ பழப்பயத்தானா निर्मित करायी थी। वहीं मंचपी गुफा के निचले भाग में स्ति पालालपी नामक मुफा को 'महाराज ऐल महामेधान के वंशज' (सम्भवतया पत्र एवं उत्सराधिकारी कालेंगाधिपति महाराज देपश्री ने निर्मित कराया था। यमपुरी नामक गुफा राजकुमार बडुख ने बनवायी थी- सम्भवतया उसने स्वयं उसी गुफा में धर्मसाधन किया था। व्याघ्र गुफा को नगर न्यायाधीश भूति ने निर्मित कराया था। उसी के निकटस्थ सर्पगुफा में कम्म, हलसिण और चूलकम्म नाम के व्यक्तियों के लेख हैं, जिनसे लगता है कि गुफा के प्रासाद को इनमें से प्रथम दो ने तथा उसके अन्तर्मुह को तीसरे ने बनवाया था। जम्बेश्वर गुफा में महाबारिया और नाकिर के नाम अंकित हैं। छोटी हाथीगुम्फा आत्मशुद्धि नामक व्यक्ति द्वारा दान की गयी थी। तत्त्वगुफा कुसुम नामक पादमूलिक (राज्यकर्मचारी विशेष) द्वारा निर्मापित है। अनन्तगुफा भी श्रमणों के ही उपयोग के लिए यमवायी गयी थी। इन विभिन्न लेणों, गुहामन्दिरों और उनमें अंकित शिलालेखों से प्रकट है कि खारवेल के बाद भी कई शताब्दियों तक खण्डगिरि-उदयगिरि जैनों का पवित्र तीर्थ और जैन श्रमणों का प्रिय आवास बनी रही। खारवेल का वंश भी कलिंग देश पर उसके उपरान्त लगभग दो-डेढ़ सौ वर्ष पर्यन्त राज्य करता रहा प्रतीत होता है, किन्तु ये उत्सरयर्ती राजे मौण महत्त्व के ही रहे लगते हैं। तोसलि यदि खारवेल की राजधानी नहीं था तो कम से कम एक महत्वपूर्ण नगर था। और वह उस काल में एक महत्वपूर्ण जैन केन्द्र था। कुछ ग्रन्थों में भगवान महावीर के तोसलि में पधारने के तथा कालान्तर में सोसलिक मापक किसी राजा द्वारा सुरक्षित जिन-प्रतिमा के उल्लेख पाये जाते हैं। जैन साहित्य के अनुसार कंचनपुर भी कलिंग का एक प्रसिद्ध नगर था। ऐसा भी विदित होता है कि कलिंग देश में भगवान आदिनाथ और महावीर के अतिरिक्त भगवान मानाथ को विशेष उपासना रही। यवनराज मिनेण्डर खारवेल युग में ही यवनराज मेनेन्द्र (मिनेण्डर) हुआ। बौद्ध साहित्य में उसका उल्लेख मिलिन्द नाम से हुआ है। मिलिन्दपश्हो (सजा मिलिन्द के प्रश्न) नामक प्राचीन ग्रन्थ से मारतवर्ष के पश्चिमोत्तर सीमान्तवर्ती सागल' (स्थालकोट) के इस यूनानी नरेश की धार्मिक एवं दार्शनिक जिज्ञासा का पता चलता है। कहा जाता है, कि उसने जैन मुनियों से भी सम्पर्क बनाया था, उन्हें प्रश्रय भी दिया था, उनसे प्रश्न पूछे थे और धर्म-चर्चा की थी। स्व. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने एक प्राचीन जैन ग्रन्थ में इस यूनानी नरेभा का नाम मैनेन्द्र भी खोज निकाला था; अन्यत्र भारतीय साहित्य में सिवाय उपर्युक्त मिलिन्दपहों के उसका कहीं कोई उल्लेख नहीं मिला है। इसका समय दूसरी शती ई. पू. का उत्तरार्ध अनुमानित है। रनारवेल-विक्रम युग :: 78
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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