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प्रयत्न महामुनि सम्मेलन और आगमज्ञान को पुस्तकारुड करने तथा पुस्तक साहित्य का प्रणयन करने के लिए चलाये गये सरस्वती आन्दोलन का प्रारम्भ इत्यादि तथ्यों का इस लेख से समर्थन होता है। इसके साथ ही यह अभिलेख महाराज खारवेल के व्यक्तित्व, चरित्र, जीवन की कालक्रमिक घटनाओं, दिग्विजय, पराक्रम और प्रताप लोकोपकार एवं लोकरंजन के लिए किये गये कार्यो, प्रजावत्सलता, धर्मोत्साह एवं धार्मिक कार्यों इत्यादि को प्रतिबिम्बित करनेवाला निर्मल दर्पण है। इस लेख से सुविदित है कि राजाधिराज खारवेल न केवल अपने युग का ही आसमुद्रक्षितीश महान् चक्रवर्ती सम्राट् था, वरन् वह सर्वकालीन महान सम्राटों में परिगणित होने के सर्वथा योग्य है। राजनीति, प्रशासन, युद्धविद्या, सार्थ-व्यवहार, साहित्य, कल एक प्रबुद्ध धार्मिकता इत्यादि एक महान सम्राट् के उपयुक्त समस्त अंगों से उसका व्यक्तित्व परिपुष्ट था, और आश्चर्य यह है कि मात्र तेरह वर्ष के राज्यकाल में उसने इतना सब सम्पादन कर लिया तथा कलिंग साम्राज्य को उसको सर्वतोमुखी उन्नति के ऐसे शिखर पर पहुँचा दिया जो 'न भूतो न भविष्यति था । उसके उपरान्त भी अवश्य ही वह कितने ही वर्ष जीवित रहा होगा, किन्तु उस शेष राज्यकाल का ऐसा ही विवरण अंकित कराने का अवसर आने के पूर्व ही यह महान् जैन सम्राट् दिवंगत हो गया, लगता है ।
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परम जैन होते हुए भी सम्राट् खारवेल सर्वधर्मसहिष्णु एवं अत्यन्त उदाराशय नृप था, और अहिंसा धर्म का पालक सच्चा धर्मवीर होते हुए भी ऐसा पराक्रमी शूरवीर था कि उसने प्रचण्ड विदेशी आक्रमणकारी यूनानी नरेश दमित्र को स्वदेश कलिंग से अतिदूर मथुरा, शायद उससे भी जागे जाकर भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमान्त से बाहर खदेड़ दिया था ।
खारवेल द्वारा निर्माणित कला-कृतियों के उपलब्ध अवशेषों पर से कलामर्मज्ञों ने उसके गुहा मन्दिरों के स्थापत्य एवं मूर्ति-पों को भी सुन्दर और निराला घोषित किया है। जिनेन्द्र भगवान् का अनन्य उपासक यह राजर्षि सम्भवतया श्रावक के व्रतों को तो अपने राज्यकाल के तेरहवें वर्ष में ही अथवा उसके कुछ पूर्व ही अंगीकार कर चुका था, सम्भव है कि उसके कुछ वर्ष पश्चात् उसने जो पहले ही स्वयं को 'भिक्षुराज' कहता है, गृहस्थ और राज्यकार्य से विराम लेकर जैन मुनि के रूप में अपने उसी कुमारी पर्वत पर तपश्चरण करके आत्मसाधन किया हो।
राजर्षि खारवेल का प्रायः पूरा परिवार अनेक राजपुरुष तथा प्रतिष्ठित प्रजाजन भी जैनभक्त थे। जिनेन्द्र का धर्म उस काल में कलिंग का राष्ट्रधर्म था और प्रजा का बहुभाग भी इसी धर्म का अनुयायी रहा प्रतीत होता है। पूर्वोक्त उदयगिरि की स्वर्गपुरी अपरनाम वैकुण्ठपुरी गुफा में अंकित एक लेख के अनुसार कलिंग चक्रवर्ती श्रीखारवेल की अग्रमहिषी ने जो राजन तलाक हत्यिसिंह की सुपुत्री थीं, कलिंग के श्रमणों के निवास के लिए अर्हन्त प्रासाद के निकट भाग में उक्त लेण
72 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ