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खारवेल-विक्रम युग (लगभग ई. पू. 20/-~-सनू ईसवी 200)
सम्राट् खारवेल कलिंग चक्रवर्ती सम्राट महामघवाहन ऐल खारवेल. दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का सर्वाधिक शक्तिशाली, प्रतापी एवं दिग्विजयी नरेन्द्र था, साथ ही यह राजर्षि परमजिन-भक्त था। अपने समय में यदि उसने कलिंग देश को भारतवर्ष की सर्वोपरि राज्यशक्ति बना दिया, सातो लोकहिता और जैनधर्ग की पालना को परिसर चिरस्मरणीय कार्य किये थे।
पूर्वी भारत में, उत्तर में मंगा नदी के मुहाने से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के मुहाने तक विस्तृत बंगाल की खाड़ी का तदवती भूभाग जंगम, कर्लिंग और कोसल नाम के तीन भागों में विभक्त था, अतएव कभी-कभी भिकलिंग भी कहलाता था, और सामान्यतया संयुक्त रूप से कलिंग कहलाता था। वर्तमान में उसे ही उड़ीसा कहते हैं।
जैनधर्म के साथ कलिंग देश का अत्यन्त प्राचीन सम्बन्ध रहा है। प्रथम तीर्थकर आदिजिन ऋषभदेव का यहाँ समवसरण आया था। तभी से देश में उनकी पूजा प्रचलित हुई। अठारहवें तीर्थकर अरनाथ का प्रथम पारणा जिस रायपुर में हुआ था, उसकी पहचान महाभारत में उल्लेखित कलिंग देश की राजधानी राजपुर से की जाली है। तीर्थकर पार्श्व का सम्पर्क भी कलिंग देश से पर्याप्त रहा था। स्वयं भगवान महावीर का पदार्पण वहाँ हुआ था। तत्कालीन कलिंग नरेश जितशत्रु के साथ राजा सिद्धार्थ की छोटी बहन यशोदया विवाही थी और उन्हीं की पुत्री राजकुमारी यशोदा के साथ महावीर के विवाह की बात चली थी। जिलशत्रु इस प्रकार महावीर के फूफा के और भगवान् के जन्मोत्सव के अवसर पर भी कुण्डलपुर पधारे थे। उनके समय में ही भगवान् का समवसरण कलिंग के कुमारी-पर्वत पर
आया था और तभी जितशत्रु ने मुनिदीक्षा ले ली थी तथा भगवान् के जीवनकाल में ही उन्हें केवलज्ञान भी प्राप्त हो गया था। यह जितशत्रु हरिवंश में उत्पन्न हुए
खारथेल-विक्रम युग :: 67