________________
viidaritisobsnoesminsooms
ये । नन्दिवर्धन के कलिंग पर आक्रमण के समय उनका ही एक वंशज कलिंग नरेश था इसके
समान हो गया. लगता है तथा उसी की किसी अन्य शाखा का उस देश पर अधिकार हो गया प्रतीत होता है। इस नवीन वंश के राजा चण्डराय के समय में अशोक मौर्य का कलिंग पर इतिहास-प्रसिद्ध विध्वंसकारी आक्रमण हुआ था। तदनन्तर सम्भवतया तिराज ने नये वंश की स्थापना की थी। कलिम के इस तृतीय राज्यवंश के संस्थापक चेतिराज के पुत्र या पौत्र क्षेमराज ने सम्राट सम्प्रति के शासन काल में कलिंग को पुनः स्वतन्त्र कर लिया। कुछ विद्वानों के मतानुसार कलिंग के ये राजे हैहयवंशी थे। खारवेल स्वयं को ऐल, मैत्र, चेति या चैदिवंशी कहता है। यों बेदि भी हैहयवंश की ही शाखा थी और स्वयं हैहयवंश हरियंश की शाखा थी। जो हो, कम से कम भगवान् पार्श्वनाथ के समय से ही कलिंग देश के राजागाण जैनधर्म के अनुयायी रहते आये थे। सम्भवतया यही कारण है कि बौधायनसूत्र, महाभारत, आदित्यपुराण आदि ब्राह्मणीय ग्रन्थों में कलिंग देश को अनार्य देश कहा है। यहाँ के निवासियों को वेदबाह्य, वज्ञविरोधी एवं धर्म-कर्म-विहीन कहा है तथा आर्य देश के द्विजों को उस देश में जाने का निषेध किया है, और यदि वहाँ गये तो उन्हें धर्मभ्रष्ट, जातिच्युत एवं पतित हो जाने का भय दिखाया है। इसके विपरीत जैन साहित्य में कलिंग की 25% आर्य देशों में गणना की गयी है और उसे धर्म-क्षेत्र सूचित किया है।
उपर्युक्त क्षेमराज का पुत्र दृद्धिराज था और वृद्धिराज का पुत्र भिक्षुराज खारयेल था। वृद्धिराज की मृत्यु अपने पिता के जीवन काल में ही हो गयी थी, अतएव क्षेमराज का उत्तराधिकारी उसका पौत्र खारवेल हुआ। खारथैल का जन्म ईसा पूर्व 190 के लगभग हुआ प्रतीत होता है, पन्द्रह वर्ष की आयु में उसे युवराज-पद प्राप्त हुआ और चौबीस वर्ष की आयु में उसका राज्याभिषेक हुआ ! उसके राज्यकाल के तेरह-चौदह वर्ष का विशद वर्णन उसके स्वयं के शिलालेख में प्राप्त है, जिसके (ई. पू. 152 के उपरान्त यह नरेश कितने वर्ष और जीवित रहा तथा उसने क्या-क्या किया, यह जानने का कोई साधन उपलब्ध नहीं है। सम्राट्र खारवेल का यह विश्वविद्युत शिलालेख वर्तमान उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में भुवनेश्वर से तीन मोल की दूरी पर स्थित खण्डांगेरि-पर्वत के उदयगिरि नामक उत्तरी भाग पर बने हुए हाथीगम्फा नाम के एक विशाल एवं प्राचीन कृत्रिम गहामन्दिर के मुख एवं छत पर सत्रह पंक्तियों में लगभग चौरानो वर्गफीट के विस्तार में उत्तीर्ण है 1 लेख की लिपि प्राली है और भाषा अर्धमागधी तथा जैन प्राकृत मिश्रित अपभ्रंश है। स्वस्तिक, जन्यावल, अशोकवृक्ष, मुकुट आदि विविध जैन सांस्कृतिक मंगल-प्रतीकों से युक्त इस ऐतिहासिक अभिलेख का भाव इस प्रकार है-अरहन्लों और सर्व सिद्धों को नमस्कार करके चैत्र (ति) राजवंश की प्रतिष्ठा के प्रसारक, प्रशस्त एवं शुभ लक्षों से युक्तं
ties :: प्रमुख प्रतिपरिका जैन पुरुष और महिलाएँ