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________________ राजधानी पाटलिपुत्र के लिए चल पड़ा। वहाँ पहुँचकर वह सम्राट के महल के नीचे गाने लगा। गीत के बोलों में उसने अपना परिचय तथा अपने पर किये गये अत्याचार का भी संकेत कर दिया। अशोक पुत्र के मधुर काट को पहचानता था। उसने भिखारी गायकवेधी राजकुमार को तुरन्त अपने पास बुलवाया और पूरा वृत्तान्त जानकर दुष्टा तिष्यरक्षिता को जीते जी अग्नि में जलवा दिया। उसके साथियों और सहयोगियों को भी कठोर दण्ड दिया। अपने ज्येष्ठ पुत्र की दुर्दशा का कारण एक प्रकार से वह स्वयं ही बना था, इसलिए सम्राट् को स्वयं भारी पश्चात्ताप हुआ। इसने पुत्र-वधू और पौत्र को भी बुला लिया और उन तीनों को अब अपने ही पास रखा। इतना ही नहीं, अन्य पुत्रों के होते हुए भी उसने कुणाल पुत्र सम्प्रति को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। अशोक के जीवन के अन्तिम कई वर्षों में तो समस्त राजकार्य युवराज कुणाल ही करता था और उसकी मृत्यु के बाद वहीं साम्राज्य का उत्तराधिकारी हुआ। किन्तु क्योंकि वहादेवा सम्म वयस्क हो चला था, पिता के नाम से राज्य कार्य का संचालन करता था। कुणाल का कुलधर्म तो जैन था ही, उसकी माता और पत्नी भी परम जिन-भक्त थीं। स्वभावतः राजकुमार कुणाल एक उत्तम जैन था। उसकी करुण कहानी हेमचन्द्राचार्य आदि जैन कथाकारों को प्रिय विषय रही है। ! RECER सम्राट् सम्प्रति सम्राट् सम्प्रति मौर्य जिसके अपरनाम इन्द्रपालित, संगत एवं विमताशोक भी थे, ई. पू. 230 के लगभग स्वतन्त्र रूप से सिंहासनासीन हुआ। इसके लगभग दस वर्ष पूर्व से ही राज्यकार्य का वस्तुतः संचालन बही कर रहा था। पहले वृद्ध पितामह अशोक के अन्तिम वर्षों में अपने पिता कुणाल के यौवराज्य काल में, तदनन्तर अशोक की मृत्यु के उपरान्त महाराज कुणाल के प्रतिनिधि के रूप में ऐसा प्रतीत होता है कि अशोक की मृत्यु के कुछ पूर्व ही एक ऐसा पारस्परिक आन्तरिक समझौता हो गया था जिसके अनुसार सम्प्रति और उसके चचेरे भाई दशरथ के बीच साम्राज्य का विभाजन हो गया था। समाट् का पद और उत्तराधिकार सम्प्रति को प्राप्त हुआ और उसकी इच्छानुसार उज्जयिनी प्रधान राजधानी बनी जहाँ से उसने साम्राज्य का आधिपत्य किया। दशरथ की साम्राज्य का पूर्वोत्तर भाग मिला, उसकी राजधानी पाटलिपुत्र रहो और वह नाम के लिए साम्राज्य के अन्तर्गत एवं सम्राट् सम्प्रति के अधीन, किन्तु वास्तव में प्रायः सर्वथा स्वतन्त्र शासक रहा। यही कारण है कि अशोक की मृत्यु के पश्चात् हम दशरथ को पाटलिपुत्र में और सम्प्रति को सुज्जविनी में राज्य करते पाते हैं। अशोक के तत्काल उत्तराधिकारियों में भी इन दोनों का नाम पाते हैं, किन्तु अधिकतर स्रोतों में अशोक महान के उत्तराधिकारी के रूप में सम्राट् सम्प्रति का ही नामोल्लेख है। अपने पितामह अशोक के समान ही सम्प्रति नन्द-मौर्य युग :: 68
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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