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________________ संस्कारों में पले भौयं अशोक की आत्मा तिलमिला उठी, भले ही वह, 'प्रचण्द कहलाता था। उसने प्रतिज्ञा कर ली कि भविष्य में वह रक्तपातपूर्ण युद्धों से सर्वथा विरत रहेगा 1 उसकी अब बैंसी आवश्यकता भी नहीं थी। सीमान्त प्रदेशों सहित सम्पूर्ण भारतवर्ष पर उसका पूर्ण एकाधिपत्य था। शासन-व्यवस्था सुचारु थी। साम्राज्य में सर्वत्र शान्ति और समृद्धि थी 1 अब सम्राट ने अपना ध्यान शान्तिपूर्ण कार्यों की ओर अधिकाधिक दिया। मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सालय खुलवाये, पुराने राजपथों की मरम्मत और नयों का निर्माण कराया, सड़कों के किनारे छायादार वृक्षा लगवाये. बाशयस्यादिवोपयोगी कार्य किये। जनता के नैलिक चरित्र को उन्नत करने का भी उसने प्रयत्न किया और उनमें असाम्प्रदायिक मनोवृत्ति पैदा करने के लिए एक ऐसे राष्ट्रधर्म का प्रचार किया जो व्यावहारिक एवं सर्वग्राह्य था। उसने श्रमणों और ब्राह्मणों दोनों ही वर्गों के विद्वानों का आदर किया, और उनका सत्संग किया। धर्मयात्राओं और धर्मोत्सकों की भी योजना की। विभिन्न स्थानों की यात्रा करके जैन, बौद्ध, आजीयिक एवं ब्राह्मण तीर्थ और दर्शनीय स्थानों को देखा। जिसमें जहाँ लिस सुधार की आवश्यकता देखी, उसे प्रेरणा द्वारा अथवा राजाज्ञा द्वारा कराने का प्रयत्न किया। जीव दया और व्यावहारिक अहिंसा को उसने अपना मूलमन्त्र इनाया। अपने मन्तव्यों का प्रचार करने के लिए प्रसिद्ध तीर्थस्थानों एवं केन्द्रों में उसने शिलाखण्डौ एवं कलापूर्ण स्तम्भों पर अपनी विज्ञप्तियाँ उत्कीर्ण करायीं । ये अभिलेख उसने ई. ए. 255 के उपरान्त भिन्न-भिन्न समयों में कित कराये प्रतीत होते हैं। गंगा के निकट बराबर नाम की पहाड़ियों पर उसने आजीधिक सम्प्रदाय के साधुओं के लिए लेणे बनवायी, और गिरिनगर की तलहटी में अपने पिता चन्द्रगुप्त द्वारा निर्मापित सुदर्शन ताल का भी अपने यवन अधिकारी तुहषास्फ की देख-रेख में जीर्णोद्धार कराया। कश्मीर के श्रीनगर और नेपाल के ललितपट्टन नामक नगरी को बसाने का श्रेय भी अशोक को ही दिया जाता है। उसकी पुत्री चारुमित्रा एवं जामाता देवपाल नेपाल में हो जा बसे थे। सम्भवतया देवपाल की उसने नेपाल का शासन भार सौंप दिया था। यह दम्पती जैन रहे प्रतीत होते हैं। नेपाल में उस काल में जैनधर्म प्रविष्ट हो चुका था। कर्णाटक के श्रवणबेलगोल में कुछ जिन-मन्दिरों का निर्माण भी अशोक ने कराया बताया जाता है। सामान्यतया यह माना जाता है कि अशोक बौद्धधर्म का अनुयायी था और उस धर्म के प्रचार-प्रसार एवं उन्नति के लिए जो इस मौर्य सम्राट ने किया वह कोई अन्य उसके पूर्व या पश्चात नहीं कर सका। किन्तु बौद्ध साहित्य एवं परवर्ती काल की बौद्ध अनुश्रुतियों में अशोक से सम्बन्धित जो अनेक कथाएँ मिलती हैं उनमें से अधिकतर को अतिरंजित अथवा कपोलकल्पित माना जाता है। ब्राह्मण अनुश्रुतियाँ इस सम्राट् के विषय में मौन हैं और जैन अनुश्रुतियों में उसकेको उल्लेख या विवरण मिलते हैं उनसे बौद्ध अनुश्रुलियों का बहुत कम समर्थन होता है। अशोक के सम्बन्ध 60 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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