SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेक पुत्रों में सर्वाधिक योग्य एवं पराक्रमी था। पित्ता के शासनकाल में वह सुञ्जयिनी का शासक रहा था और उस समय उसने निकटस्थ विदिशा के एक जैन श्रेष्ठी की रूप-गुण-सम्पन्ना असन्ध्यमित्रा नाम्नी कन्या से विवाह कर लिया था, जिससे कुणाल नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ था। तक्षशिला के विद्रोह का सफलतापूर्वक दमन करके उसने उस प्रान्त का शासन-भार भी कुछ काल सँभाला था। इन्हीं सब कारणों से पूर्व सम्राट ने अशोक को ही युवराज घोषित कर दिया था, अतएव पिता की मृत्यु होते ही अशोक ने राज्यसत्ता अपने हाथ में ले ली। उसके कई भाइयों ने विद्रोह किसका उमेत समया मला और जनता भी उसके अनुकूल थी। लथापि पिता की मृत्यु के कई वर्ष पश्चात् ही यह विधिवत सिंहासनारूढ़ हो सका। उसके एक शिलालेख में 250 संख्या का उल्लेख मिलता है जिसका विभिन्न विद्धान विभिन्न अर्थ लगाते हैं। यह सम्भव है कि उक्त संख्या ततः प्रचलित महावीर निर्माण संवत् का वह वर्ष हो जब अशोक का विधिवत राज्याभिषेक हुआ था और जिसके अनुसार उक्त घटना की तिथि ई. पू. 271-270 आती है। अधिकांश विद्वान भी उसके लिए ई. पू. 279-269 अनुमान लगाते हैं। बौद्ध अनुश्रुतियों का यह कथन कि अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या करके अपना चण्डाशोक नाम सार्थक किया था, अतिशयोक्तिपूर्ण ही नहीं वरन् असत्य माना जाता है। यह ठीक है कि प्रारम्भ में वह उग्र प्रकृति का दृढ़ निश्चयी एवं कठोर शासक था तथा उसने अपने मार्ग के समस्त कण्टकों को निर्ममता के साथ उखाड़ फेंका था और अनुशासन को ढीला नहीं होने दिया था। कलिंग देश की विजय नन्दिवर्धन मे ई. पू. 424 के लगभग की थी। तभी से बह राज्य मगध के अधीन रहता आया था। नन्द-मौर्य संघर्ष के समय सम्मवतया कलिंग के राजे अर्धस्वतन्त्र से हो गये थे, यद्यपि चन्द्रगुप्त एवं बिन्दुसार के समय में उन्हें सिर उठाने का साहस नहीं हुआ। बिन्दुसार की मृत्यु के उपरान्त होनेवाली अन्तःकलह का लाभ उठाकर उन्होंने अपनी स्वतन्त्रता सोषित कर दो प्रतीत होती है। इस समय कलिंग का राजा चण्डराय रहा प्रतीत होता है। ये राजे सम्भवतया महावीर कालीन कलिंगनरेश जितशत्रु के वंशज धे। किन्हीं का अनुमान है कि जितशत्रु के वंश की समाप्ति पर वहाँ वैशालीनरेश चेटक के किसी वंशज ने अधिकार कर लिया था और उसी का वंश अब कलिंग में चल रहा था। जो हो, इसमें सन्देह नहीं है कि कलिंग के राज्यवंश में जैन धर्म की प्रवृत्ति थी और उक्त मण्डसय भी जैनधर्म का अनुयायी था । अस्तु, ई. पू. 22 के लगभग अपने राज्य के आठवें वर्ष में एक विशाल सेना लेकर अशोक ने कलिंग राज्य पर आक्रमण कर दिया, भीषण युद्ध हुआ, लाखों सैनिक मृत्यु के घाट उतार दिये गये, कलिंगराज पराजित हुआ, प्रचण्ड अशोक का दबदबा सर्वत्र बैठ गया। अब पचासों वर्ष तक मौर्य सम्राट् के विरुद्ध सिर उठाने का साहस किसी को भी नहीं हो सकता था । परन्तु इस भयंकर नरसंहार को देखकर अहिंसामूलक जैनधर्म के नन्द-मौयं युग :: 59
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy