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________________ RAM में जिसकी शिक्षा-दीक्षा हुई थी, वह निकम्मा था। अशक्त आसक नहीं हो सकता था 1 उसका शासनकाल शान्तिपूर्ण एवं सुव्यवस्थित ही रहा। मध्य एशिया आदि के यूनानी एवं भारतीय-यूनानी (यवन) नरेशों के साथ भी उसके राजनीतिक आदान-प्रदान हुए। सेल्युकस के उत्तराधिकारी अन्तियोकस सोतर ने उसके दरबार में देइमाम राज क्षेत्रा शा और मिरदेश के राजा दालेनी ने झायनिसयोनाम का दूत भेजा था। इन नरेशों के साथ उसका नानाविध मेंटों और उपहारों का भी मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान हुआ था। बिन्दुसार ने कई यूनानी दार्शनिकों को भी भारत आने का निमन्त्रण दिया था। चन्द्रगुप्त ने दक्षिण विजय तो की थी, किन्तु उसे सुसंगठित एवं स्थायी करने का पर्याप्त अवसर उसे नहीं मिला था। अतएव बिन्दुसार ने दक्षिण यात्रा की। अपने माता-पिता की भाँति यह भी जैनधर्म का अनुयायी था। कुलगुरु आचार्य भद्रबाहु के समाधिस्थान तथा स्वपिता मुनि चन्द्रगुप्त के दर्शन करने, अथवा सम्भव है उनके स्वर्गवास के उपरान्त उनकी तपःस्थली तथा समाधि का दर्शन करने के लिए उस ओर जाना उसके व्यक्तिगत उद्देश्य थे, और पूर्व-विजित प्रदेशों को भी विजय करके सागर से सागर पर्यन्त सम्पूर्ण दक्षिण भारत पर अधिकार करना उसके राजनीतिक लक्ष्य थे। दोनों में ही वह सफल हुआ। भद्रबाह एवं चन्द्रगुप्त की तपोभूमि श्रवणबेलगोल में उसने कई जिन मन्दिर आदि भी निर्माण कराये बताये जाते हैं। बौद्ध ग्रन्थ 'दिव्यावदान' में इस प्रतापी मौर्य सम्राट् को क्षत्रिय मूर्धाभिषिक्त कहा है और तिब्बती इतिहासकार तारानाथ ने उसे सोलह राजधानियों एवं उनके मन्त्रियों का उच्छेद करनेवाला बताया है। पिता के सामन्य में उसने कुछ वृद्धि ही की थी। समपूर्ण भारतवर्ष पर उनका निष्कण्टक आधिपत्य था। बिन्दुसार की कई (एक मत से सोलह) पत्नियाँ थीं, जिनमें एक सम्भवतया यवनराज 'सेल्युकस की दुहिता हेलन थी, तथा अनेक पुत्र थे। किन्हीं के अनुसार उसके पुत्रों की संख्या एक सौ-एक थी। उसके अन्तिम दिनों में तक्षशिला के प्रान्तीय शासक के अत्याचारों के कारण वहीं की प्रजा ने विद्रोह कर दिया था। सम्राट् के आदेश पर राजकुमार अशोक ने वहाँ जाकर बड़ी चतुराई और सूझ-बूझ के साथ विद्रोह का शमन किया और दोषी अधिकारी को दण्डित किया। ई. पू. 273 के लगभम इस द्वितीय मौर्य सम्राटू बिन्दुसार का देहान्त हुआ। ..... .. ................. अशोक महान् श्री अशोक, अशोकचन्द्र, अशोकवर्धन, चण्डाशोक आदि नामों से विभिन्न अनुश्रुतियों में उल्लेखित अशोक मौर्य की गणना आधुनिक इतिहासकार भारतवर्ष के ही नहीं, विश्व के सर्वमहान् सम्राटों में करते हैं। देवानां-प्रिय और प्रिय-दर्शी उसकी उपाधियों थी, जो सम्भवतया उसके पिता तथा अन्य कई भारतीय नरेशों की भी रहीं। वह सम्राट बिन्दुसार का ज्येष्ठ पुत्र नहीं था, किन्तु सुसीम, सुमन आदि 5 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाओं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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