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अत्याचारों से पीड़ित होकर शाक्य प्रवेश से भागे हुए मौर्य जाति के कुछ लोगों ने यह मयूरग्राम या नगर बसाया था। सघन वृक्षों के मध्य स्वच्छ जलाशय के निकट केकाध्वनि से गुंजायमान यह एक अत्यन्त रमणीक स्थान था और उस बस्ती के पर मयूराकृति तथा मोरपंखी रंगों से चित्र-विचित्रित थे। इस उल्लेख से भी जैन अनुश्रुतियों का ही समर्थन होता है। शूद्रादासी मुरा के नाम से मौर्य शब्द की व्युत्पत्ति की बात बहुत बाद की मनगढन्त है। घूमते-घूमते चाणक्य एक बार इसी ग्राम में आ पहुँचा और उसके मौर्यवंशी मयहर (मुखिया) के घर ठहरा। मुखिया की इकलौती लाड़ली पुत्री गर्भवती थी और उसी समय उसे चन्द्रपान का विलक्षण दोहला उत्पन्न हुआ, जिसके कारण घर के लोग चिन्तित थे। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि दोहला कैसे शान्त किया जाए। चाणक्य ने आश्वासन दिया कि वह गर्भिणी को चन्द्रपान कराके उसका दोहला शान्त कर देगा, किन्तु शर्त यह है कि उत्पन्न होनेवाले शिशु पर यदि वह पुत्र हुआ तो चाणक्य का अधिकार होगा और वह जब चाहेगा उसे अपने साथ ले जाएगा। अन्य चारा न देखकर शर्त मान ली गयी और चाणक्य ने एक थाली में जल (अथवा श्रीर दूध) भरकर और उसमें आकाशगामी पूर्णचन्द्र को प्रतिबिम्बित करके गर्भिणी को इस चतुराई से पिला दिया कि उसे विश्वास हो गया कि उसने चन्द्रपान कर लिया हा शान्तीय
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अन्यत्र के लिए प्रस्थान कर गया। कुछ मास पश्चात् मुखिया की पुत्री ने एक चन्द्रोपम सुदर्शन, सुलक्षण एवं तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। उक्त विचित्र दोहले के कारण उसका नाम चन्द्रगुप्त रखा गया (चंदगुत्तो से नाम कये) और याजस्य से की गयी प्रतिज्ञा के अनुसार उसे परिव्राजक का पुत्र कहा जाने लगा। सम्भवतया उसके अपने पिता को किसी युद्ध आदि में वीरगति प्राप्त हो चुकी थी । नन्द द्वारा चाणक्य का अपमान और चन्द्रगुप्त का जन्म आदि घटनाएँ ईसा पूर्व 345 के लगभग हुई प्रतीत होती हैं।
विशाल साम्राज्य के स्वामी शक्तिशाली मन्दों को जड़ से उखाड़ फेंकना कोई हँसी-खेल नहीं था। चाणक्य इस बात को अच्छी तरह जानता था, किन्तु वह अपनी धुन का भी पक्का था, अतएव धैर्य के साथ अपनी तैयारी में संलग्न हो गया। अगले कई वर्ष उसने धातु विद्या की सिद्धि एवं स्वर्ण आदि धन एकत्र करने में व्यतीत किये बताये जाते हैं। आठ-दस वर्ष पश्चात् पुनः चाणक्य उसी मयूरग्राम में अकस्मात् आ निकला। वह ग्राम के बाहर थकान मिटाने के लिए एक वृक्ष की छाया में बैठ गया और उसने देखा कि सामने मैदान में कुछ बालकं खेल रहे हैं। एक सुन्दर घपल तेजस्वी बालक राजा बना हुआ था और अन्य सबपर शासन कर रहा था। कुछ देर तो चाणक्य मुग्ध हुआ बालकों के उस कौतुक को देखता रहा, विशेषकर बाल राजा के अभिनय ने उसे अत्यधिक आकृष्ट किया । समीप आकर ध्यान से देखा तो उसे उस बालक में सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार एक चक्रवर्ती सम्राट् के सभी लक्षण दीख
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50 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ