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________________ राजनीति में अवतीर्ण होने के पूर्व माणक्य. आर. चन्द्रगुप्त कौन थे, क्या थे, उनका रक्तिमत्त एवं पारिवारिक जीवन क्या था और इन दोनों का अन्त क्या और कैसे हुआ, इन तथ्यों पर उपयुक्त मालिका साधन कार्य प्रकाश नहीं डालते। ::..:: :: चाणक्य के नाम से प्रचलित अर्थशास्त्र विश्वविश्रुत ग्रन्थ है। किन्तु उस ग्रन्थ के तथा स्वयं चाणक्य के विषय में पी तत्कालीन यूनानी लेखक सर्वथा मौन हैं। पाटलिपुत्र के दरबार में कई वर्ष पर्यन्त रहनेवाला यूनानी राजदूत मेगस्थनीय भी उनका कोई उल्लेख नहीं करता। अर्थशास्त्र का जो स्पलब्ध संस्करण है ग्रह चाणक्य के समय से कई सौ वर्ष बाद का पर्याप्त प्रक्षिप्त, त्रुटित एवं विकृतः संस्करण है। बहुत. बाद के लिखे हुए मुद्राराक्षसः नाटक, कहा-सरितः सागर; प्रभूत्तिः कथा मन्त्रों के अनुसार चाणकर के अपरनाम बिगगन और कौटिल्य थे। वह कटिलः कटनीति का उपासक, अत्यन्त क्रोधी, मानी और दरिद्र वेदानुवायी ब्राह्मपा था। इन्हीं कयाओं में चन्द्रगुप्त की मुरा नामक शूद्रा दासी से उत्पन्न स्थयं राजा मन्द का पुत्र बताया है। बौद्ध साहित्य में उसे मोरिया नामक व्रात्यक्षत्रिय जाति का दुधक सूचित किया है। सौभाग्य से जैन साहित्य में, कई विभिन्न द्वारों से इन दोनों ऐतिहासिक विभूतियों का अध से अन्त तक सटीक इसियत प्राप्त हो जाता है, जो अन्य ऐतिहासिक साधनों से भी अनेक देशों में समर्पिल होता है, अथवा बाधित नहीं होता। : : अस्तु, चाणक्य का जन्म ईसा पूर्व 973 के सागमा सोरन विषय के अन्तर्गत चय नामः के ग्राम में हुआ था। इस स्थान की स्थिति अज्ञात है। कहीं-कहीं उसे कसमपुर (पाटलिपुत्र) और कहीं-कहीं लक्षशिला का निवासी भी बताया है। उसकी माता का नाम बणेश्वरी और पिता का लणक :था। बागक का. पुत्र होने से इसका नाम चायाक्य हुआ यह लोग ज्ञाति-वर्ण की अपेक्षा ग्राहरण थे, किन्तु धर्म की दृष्टि से धर्मभीरू जैन श्रावक थे। इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है, आज भी कर्णाटक आदि में अनेक ब्राह्मण कुल-परम्परा से जैन धर्मानुयायी हैं: शिक्ष:खाणक्य के मुंह में जन्म से ही दाँत थे, यह देखकर घर के लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। प्राया सभी कोई जैन साधु घणक: के घर पधारे तो उसने नवरात: शिशु को गुरू चरणों में डालकर उनसे इस अद्भुत बात का उल्लेख किया। देख- सुनकर साधु ने कहा कि यह बालक बड़ा होने पर एक शक्तिशाली नरेश होगा । ब्राह्मण सशकः श्रावकोचित सन्तोपो वृत्ति का धार्मिक व्यक्ति था। वैसी ही उसकी सहधर्मिणी थी। राज्य वैभव को के लोग : पाप. और पाप का कारण समझते थे, अतरस्क: अणक ने शिशु के दाँत उखान झाले इस पर साधुओं ने भविष्यवाणी की कि अब यह बालक स्वयं तो राजा नहीं होगा, किन्तु किसी अन्य व्यक्ति के उपलक्ष्य. या माध्यम से राज्य-शकिल का उपयोग और संचालन करेगा। बय- प्राप्त होने पर तत्कालीन शान केन्द्र : तक्षशिला तथा उसके आसपास निवास करने वाले आचार्यों के निकट चाणक्य ने छह , बहरानुयोग, दर्शन, न्याय, पुसत और धर्मशास्त्र ऐसे चौदह विद्यास्थानों का अध्ययन किया और 4K :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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