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________________ यसम्मHIMAmmamm मेल्लक, क्षुल्लक, ब्रह्मचारी, प्रमृति खण्ड या अल्पवस्त्रधारी प्रती श्रावकों का भी उल्लेख किया है। उन यूनानी लेखकों ने तीर्थकर आदिनाथ और उनके पुत्र भरत चक्रवती से सम्बन्धित लोक-प्रचलित अनुश्रुतियों का भी आलेख किया है। नन्द उनसेन, चन्द्रगुप्त मौर्य, अमित्रघात, हिन्दुसार आदि के सम्बन्ध में उनके वृत्तान्त जैन अनुश्रुति से जितने समर्थित होते हैं, उतने अन्य किसी अनुश्रुति से नहीं । महत्वपूर्ण घटनाओं की जो कोई तिथि आदि उन्होंने दी हैं ये भी विद्वानों के मतानुसार उन्हें जैनों से ही प्राप्त हुई थी। जैन विचार का प्रभाव एवं प्रसार भी इतना व्यापक था कि सूनानी लेखकों ने हिंसक यज्ञों का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया और यह प्रकट किया है कि ब्राह्मण साधु और पण्डित मी शाकाहारी थे। दूसरी महान् घटना इस काल की वह राज्य क्रान्ति थी जिसमें नन्दवंश प्रायः समाप्त हो गया और उसके स्थान में मौर्य वंश स्थापित 35225 2 सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य और मन्त्रीश्वर चाणक्य 3. आधुनिक दृष्टि से भारतवर्ष के शुद्ध व्यवस्थित राजनीतिक इतिहास का जो प्राचीन युग है, उसके प्रकाशमान नक्षत्रों में प्रायः सर्वाधिक तेमपूर्ण नाम चन्द्रगुप्त और चाणक्य हैं। ईसा पूर्व चौधौं शताब्दी के अन्तिम पाद के प्रारम्भ के लगभग जिस महान राज्यक्रान्ति मे शक्तिशाली भन्दवंश का उच्छेद करके उसके स्थान में मौर्य वंश की स्थापना की थी, और उसके परिणामस्वरूप थोड़े ही समय में मगध साम्राज्य को प्रथम ऐतिहासिक भारतीय साम्राज्य बनाकर अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया था, उसके प्रधान नायक ये ही दोनों गुरु-शिष्य थे। एक यदि राजनीति विद्या-विचक्षण एवं नीति-विशारद ब्राह्मण पण्डित था तो दूसरा परम पराक्रमी एवं तेजस्वी क्षत्रिय वीर था। इस विरल मणि-कांचन संयोग को सुगन्थित करनेवाला अन्य दुर्लभः सुयोग यह था कि यह दोनों ही अपने-अपने कुल की परम्परा तथा व्यक्तिगत आस्था की दृष्टि से जैनधर्म के प्रबुद्ध अनुयायी थे। .: प्राचीन यूनानी लेखकों के वृत्तान्तों, शिलालेखीय एवं उत्तरवर्ती साहित्यिक आधारों और प्राचीन भारतीय अनुश्रुति की ब्राह्मण एवं बौद्ध धाराओं से यह तो पता चल जाता है कि मगध के नन्द राजा के बरताव से कुपित होकर ब्राह्मण राणक्य मैं नन्दवंश का नाश करने की प्रतिज्ञा की थी, धीर चन्द्रगुप्त के सहयोग से युद्ध नीति का आश्रय लेकर वह सफल मनोरथ हुआ था, और यह कि उन दोनों के प्रयत्नों से साम्राज्य विस्तृत, सबल और सुदृढ़ हुआ, शासन-व्यवस्था उत्तम हुई तथा राष्ट्र सुखी, समद्ध, सुप्रतिष्ठित एवं सयुम्नत हुआ था। गत सार्थक एक लौ वर्षों की शोध-खोज ने यह तथ्य भी प्रायः निर्विवाद सिद्ध कर दिया है कि भारतवर्ष के प्रायः सभी महान् ऐतिहासिक सम्राटों की भाँति सर्व-धर्म-सहिष्णु एवं अति उझाराशय होते हुए भी व्यक्तिमतरूप से चन्द्रगुप्त मौर्य जैनधर्म का अनुयायी थर । तथापि मगध की मन्द-मौर्य युग :: 47
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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