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भएण्टीक्वेरी है। महासभा के कुण्डलपुर जधिवेशन को 1907 ई. में उन्होंने अध्यक्षता की और उसी वर्ष दक्षिण के जैन तीर्थों की यात्रा की और वहीं हस्तलिखित ग्रन्थों के संरक्षण, धवलादि महानन्धों के उद्धार का संकल्प किया सथा संकल्प पूरा होने तक के लिए ब्रह्मचर्यव्रत अंगीकार किया। उन्होंने आरा में प्राथमिक पाठशाला और शिखरजी पर एक धर्मार्थ औषधालय भी स्थापित किया था। सरकार ने उन्हें आनरेरी मजिस्ट्रेट नियुक्त किया था। उनके होनहार प्रिय अनुज.धर्मकुमार का 1900 ई. में असामयिक निधन हो गया था, जिसका उन्हें बड़ा सदमा पहुँचा। धर्मकुमार की विधवा पत्नी बालिका चन्दाबाई को, उन्होंने योग्य पण्डित नियुक्त करके संस्कृत भाषा तथा धर्मशास्त्रों की उत्तम शिक्षा दिलाया और आगे चलकर मचाशि पण्डिता चन्दाबाईजी आरा के प्रसिद्ध बालाविश्राम की संस्थापिका (1921 ई.) एवं संचालिका हुई। यह वृद्धा तपस्विनी आज भी एकनिष्ठता के साथ स्त्रीशिक्षा एवं समाज-सेवा में रत है। बाबू देवकुमार के निर्मलकुमार और चक्रेश्वरकुमार नाम के दो सुपुत्र हुए। बाबू निर्मलकुमार ने अपने देवतुल्य स्वर्गीय पिता के स्वप्नों को साकार करने का प्रशंसनीय प्रयत्म किया।
साह चण्डीप्रसाद-धामपुर जिला बिजनौर निवासी प्रतिष्ठित, सम्पन्न एवं समाजसेवी सज्जन थे। इनका जन्म 1872 ई. में हुआ। वह बीस वर्ष सक अराबर धामपुर की नगरपालिका के अध्यक्ष रहे। आनरेरी मजिस्ट्रेट भी पन्द्रह वर्ष रहे। किन्तु स्वदेशी आन्दोलन के प्रभाव में उस पद से त्यागपत्र दे दिया और स्वातन्त्र्य आन्दोलन को सदा आर्थिक सहायता भी प्रदान करते रहे। धामपुर के चैत्यालय का शिखरबन्द मन्दिर के रूप में निर्माण कराया और एक कन्या पाठशाला की भी स्थापना की। अनेक लोकोपकारी कार्य किये। स.ब. द्वारकादास, साह, जुममन्दरदास, ला. जम्बूप्रसाद, ला. हुलासराय, ला, शिब्बामल आदि समाज के जूस युग के प्रभावक सज्जनों के साथ मिलकर समाजसेवा करते रहे। उनके सुपुत्र देवकीनन्दन भी नगरपालिका और अहिच्छत्रातीर्थ की प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष रहे।
लाला मुन्नेलाल कारची-लखनऊ निवासी नंगूमल के पौत्र और वंशीधर के पुत्र लाला मुन्नेलाल कागजी का जन्म 1869 ई. में और निधन 1944 ई. में हुआ। र बड़े कुशल व्यापारी, व्यवहार चतुर और धर्मिठ सज्जन थे। स्वपुरुषार्थ द्वारा अत्यन्त साधारण स्थिति से उठकर उन्होंने पर्याप्त सम्पत्ति अर्जित की और धन का सदुपयोता भी किया 1 लखनऊ में एक विशाल धर्मशाला एवं जिनमन्दिर तथा एक चैत्यालय बनवाया। 1936 ई, के दक्षिण यात्रासंघ, 1939 ई. में लखनऊ की पंचकल्याणक प्रतिष्टा और 1944 ई. के परिषद् के लखनऊ अधिवेशन के आयोजकों में वह प्रमुख थे।
रायबहादुर सुलतानसिंह...तहसील सोनीपत के कस्वे कोताना निवासी श्योसिंहराय के पौत्र और निहालचन्द के पुत्र थे। यह प्रसिद्ध रईस एवं जमीदार
RRB :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ