________________
Re:
घराना था। इनका जन्म 1876 ई. में हुआ था। पिता की मृत्यु इनके शैशव में ही हो गयी थी, अतः पितामह ने लालन-पालन किया । बयस्क होने पर 1898 ई. में इन्होंने कारबार स्वयं सँभाल लिया, दिल्ली को निवास बनाया और अपनी कार्य-कुशलता द्वारा पैतृक सम्पत्ति को इतना बढ़ाया कि कुछ ही वार्षों में दिल्ली के तत्कालीन साहुकारों में अग्रणी स्थान प्राप्त कर लिया, तथा दिल्ली, मेरठ, शिमला
आदि अनेक स्थानों की इम्पीरियल बैंक की शाखाओं के खजांची हो गये। 1932 ई. में दिल्ली नगरपालिका के सदस्य, 1905 ई. में आनरेरी मजिस्ट्रेट, 1910 ई. में पंजाब लेजिस्लेटिव कौंसिल के मनोनीत सदस्य और रायबहादुर हो गये। इतने राज्य-मान्य होते हुए भी देशभक्त और कांग्रेस के मूक सेवक भी थे। उनके घर पर वायसराय, चीफ़ कमिश्नर, राजे-महाराज आदि अतिथि होते थे तो स्वयं महात्मा गाँधी, मोतीलाल नेहरू, सरोजनी नायडू जैसे सर्वोच्च नेता भी वहीं ठहरते थे। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक भी उनकी कोठी पर कई बार हुई। बड़े भद्र-प्रकृति, अतिथि-सेवी, लदार, परोपकारी और लोकप्रिय थे। उनका निधन 1930 ई. में हुआ था। उनके सुपुत्र रघुवीरसिंह ने अपनी विशाल कोठी में एक आदर्श नर्सरी एवं मोण्टेसरी शाला स्थापिल की थी रायबहादुर सुलतानसिंह ने लाखों की पैतृक सम्पत्ति को बढ़ाकर करोड़ों की कर दिया था। बड़े वाट से रहते थे, अँगरेज्ञ उन्हें 'किंग ऑफ कश्मीरी गेट' कहते थे, तो 1921 ई. में महात्मा गाँधी ने अपना प्रथम उपवास इन्हीं की कोठी में किया था। धर्म से भी लगाव था। 1900 ई. में चार सौ यात्रियों का संघ लेकर तीर्थयात्रा की थी और 1928 ई. की दिल्ली को विम्ब-प्रतिष्ठा की व्यवस्था में अग्रणी थे। विना साम्प्रदाविक भेदभाव के दिलही की अनेक शिक्षा-संस्थाओं को प्रथव दिया। लनकी धर्मपत्नी सुशीलादेवी मे 1980 ई. आदि के कांग्रेस आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया, पुलिस की लाठियों खार्थी, अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्षा रहीं और दिल्ली में सरस्वती-भवन नाम की आदर्श महिलोपकारी संस्था स्थापित की।
दीवान बहादुर ए.बी. लहे...महाराष्ट्र प्रदेश के प्रबुद्ध जैन जन-नेता थे। अंगरेजी शासन में उन्नति करके उन्होंने दीवाम-बहादुर की उपाधि पायी तो देश-सेवा एवं कांग्रेस आन्दोलन में भाग लेकर बम्बई राज्य के प्रथम मन्त्रिमण्डल में सम्मिलित हए। जैनधर्म पर अंगरेजी में कुछ पुस्तकें भी उन्होंने लिखीं।
लाला जम्बूप्रसाद---सहारनपुर के प्रसिद्ध धनिष्ट एवं समाजसेवी उदारमना रईस लाला जम्बूप्रसाद का जन्म 1877 ई. में हुआ था और 1900 ई. में वह लाला उग्रसेन के दत्तक पुत्र के रूप में सहारनपुर की इस प्रसिद्ध जमींदारी स्टेट के स्वामी बने। हाला सग्रसेन भी धर्मात्मा थे और महासभा के संस्थापकों में से थे। प्रारम्भ में कर वयं जम्बूप्रसाद उक्त स्टेट के लिए हुई लम्बी मुकदमेबाज़ी में उलझे रहे। उससे निवृत्त होकर 1947 ई. में उन्हान धर्म और समाज की सेवा में पूर्ण योग दिया।
आधुनिक युग : अंगी बारा शासित प्रदेश :: 847