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के चन्द्रप्रभु-मन्दिर का जीर्णोद्धार होकर 1842 ई. में प्रतिष्ठा हुई थी। यह मन्दिर पूर्णतया व्यस्त हो गया था और बड़ा मन्दिर कहलाता है। उनकी सुशीला एवं धर्मात्मा पत्नी बिजलीबाई थी, जिससे उनके मोतीचन्द, पानाचन्द, माणिकनन्द और जवलचन्न नामक चार पुत्र और हेमकुमारी एवं मंछाकुमारी नाम की दो पुत्रियों हुई। इनमें से सेठ माणिकचन्द का जन्म 1851 ई. की धनतेरस के दिन हुआ था। सूरत में व्यापार मन्दा पड़ गया तो 1863 ई. में हीराचन्द सपरिवार बम्बई चले आये। यहाँ इनके चारों पुत्र मोती पिरोने का कार्य करने लगे और शनैः शनैः उसमें दक्ष हो गये। इनमें भी माणिकचन्द सर्वाधिक दक्ष हुए और 1864 ई. में ही इन लोगों ने बम्बई में अपना स्थतन्त्र मोतियों एवं जवाहरात का व्यापार जमा लिया। दो वर्ष के भीतर ही माणिकयन्द-पानाचन्द जौहरी नाम की फर्म प्रसिद्ध हो चली। अपनी मितव्ययिता ईमानदारी, साख, कार्यकुशलता, व्यापार-चातुर्य और अध्यवसाय के बल पर फर्म ने अतिशय उन्नति की और विदेशो से सीधे व्यापार करने लगी। अब सेठ माणिकचन्द बम्बई के प्रधान जौहरी थे, अदूट धन था, अँगरेज सरकार से भी सम्मान मिला और यह आनरेरी "जस्टिस ऑफ दी पीस' (जे.पी.) बना दिये गये। पूरा परिवार परम धार्मिक था और वह स्वयं तो अपने समय के प्रायः सर्वमहान् संस्कृति-संरक्षक, समाज-सुधारक, विद्या-प्रचारक, उदार, दानवीर और धर्मिष्ठ थे। उन्होंने समाज में जागृति उत्पन्न करने के लिए पूरे देश का भ्रमण किया, स्थान-स्थान में स्वयं आर्थिक सहयोग और प्रेरणा देकर बोर्डिंग हाउस (जैन छात्रावास) स्थापित कराये। अनेक छात्रवृत्तियाँ दी। बम्बई प्रान्तिक महातभा, माणिकचन्द्र-परीक्षालय, माणिकचन्द्र जैन ग्रन्थमाला, साप्ताहिक जैनमित्र आदि की स्थापना की। तीर्थों के उद्धार एवं संरक्षण में भी योग दिया, मन्दिर और धर्मशालाएँ भी बनवायीं, समाज की करीतियों को दूर करने के लिए अभियान चलवाये, जिनवाणी के उद्धार के प्रयत्न किये, अनेक विद्वानों को प्रश्नय दिया और 1934 ई. में दियम्बर जैन डायरेक्टरी' प्रकाशित करायो। महान कमंट धर्मसेवी एवं समाजसेवी सच्चे जैन मिशनरी ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद और अपनी सुपुत्री महिलारल मममबेन के निर्माण का श्रेय सेठ माणिकचन्द को ही है। पण्डितपयर गोपालदास बरैया के विद्योत्कर्ष में भी उनका हाथ था। लगभग आठ लाख रुपये का दान उन्होंने अपने जीवन में किया। यह उदारमना साम्प्रदायिक संकीर्णता से दूर थे। दिनांक 16 जुलाई 1914 ई. को रात्रि के दो बजे इन दानवीर सेठ माणिकचन्द जे.पी. का देहान्त हुआ 1 स्व, पण्डित नाथूराम प्रेमी के शब्दों में भारत के आकाश से चमकता हुआ तारा टूट पड़ा । जैनियों के हाथ से चिन्तामणि रत्न खो गया। समाज मन्दिर का एक सुदृढ़ स्तम्भ गिर गया।' यह वास्तव में उस काल के युग-प्रवर्तक जैन महापुरूष थे।
राजा चन्दैया हेगडे-मैसूर राज्य के दक्षिण कनास प्रान्त में स्थित धर्मस्थल नामक कस्बे के निवासी बड़े धनवान् एवं धर्मात्मा श्रेष्ठी थे। वह राज्य में
382 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिला