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'विशाल के
धी। वह वर्तमान शताब्दी के प्रारम्म तक विधमान थे। उनके सुपुत्र धर्माधिकारी रत्नवर्म हेगड़े थे। उन्होंने भगवान बाहुबलि की 39 फुट उत्तुंग विशालकाय खगासन मनोज्ञ प्रतिमा का निर्माण कराया है जिसे सुदक्ष शिलाकार रंजाल गोपालकृष्ण शेगों के नेतृत्व में 25 से 100 शिल्पकारों ने बनाया है। मूर्ति के बनाने में एक लाख रुपये की लागत आयी और उसे निर्माणस्थान से धर्मस्थल तक लाने में, जहाँ उसे प्रतिष्ठित किया जाना है, तीन लाख रुपये व्यय हुए हैं। बीच में रलवर्मजी का देहान्त हो जाने से अब उनके सुयोग्य पत्र धर्माधिकारी वीरेन्द्र हेगडे पिता के अधूरे कार्य को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील हैं। मोम्मटेश की दक्षिण देशस्थ विशालकाय प्रतिमाओं में यह क्रम की दृष्टि से छठी और विशालता की दृष्टि से तीसरी मूर्ति होगी।
र.ल. द्वारकादास-नहटौर (जिला बिजनौर) निवासी सेठ छोटामल के पौत्र और ला: थानसिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। थालसिंह बड़े धर्मात्मा, दवालु और दानी समान थे। मृत्यु के समय उन्होंने सुपुत्र द्वारकादास को तीन शिक्षा दी थीं-नित्य व्यायाम करना, कभी भी किसी से भी कुछ उधार न लेना और न्यायपूर्वक धनोपार्जन करना। द्वारकादास का जन्म 1889 ई. में हुआ था। पिता की शिक्षाएँ उन्होंने गाँठ योध ली थी और रुड़की कॉलेज से परिश्रमपूर्वक इंजीनियरिंग पास करके सरकारी इंजीनियर नियुक्त हो गये थे। उत्तर प्रदेश के कई जिलों में तथा कलकत्ता में उन्होंने सफलतापूर्वक कार्य किया। उनकी योग्यता एवं ईमानदारी की प्रशंसा राजा-प्रजन्त में सर्वत्र थी और वह अपने समय के अत्यन्त कुशल भारतीय अभियन्ता समझे जाते थे। फलस्वरूप 1901 ई. में 'रायसाहब' और तदनन्तर रायबहादुर' उपाधियाँ मिली। बड़े दानी और धर्मात्मा थे, अनेक निधन छात्रों को छात्रवृत्तियाँ देते थे और अपने बंगाली आदि अनेक अजैन मित्रों को साहित्य देकर उन्होंने जैनधर्म के प्रति आकृष्ट किया था। अनेक से मांस-मदिरा सेवन का आजन्म त्याग कराया था। महासभा के भी वार्षों सभापति रहे। उनके पुत्र नन्दकिशोर डिप्टी कलक्टर हुए और होनहार समाजसेवी पौत्र चन्द्रकिशोर थे, जिनका मात्र 38 वर्ष की आयु में 1950 ई. में एक दुर्घटना में देहान्त हो गया।
ला.गिरधरलाल-शाही खजांची राजा हरसुखराय के पौत्र और सेठ सुगनचन्द के पुत्र थे। सन् 1857 ई. के विप्लब के उपरान्त यह सरकारी खजांची हुए तथा गवर्नर-जनरल और पंजाब के लेपटोनेण्ट गवर्नर के दरबारी रहे। दिल्ली की प्राचीन दिगम्बर जैन पंचायत के संस्थापक ने और धर्मपुरे के अपने पूर्वजों द्वारा निर्मापित नये मन्दिर में नित्य शास्त्र सभा किया करते थे। इनके वंशज दिल्ली में अभी भी
विद्यमान हैं।
ला. ईशरीप्रसाद--दिल्ली के सरकारी खजांची ता. सालिगराम के वंशज और धर्मदास जांची के पुत्र या अनुज थे। सरकार की ओर से यह 1877 ई. में ओल्ड
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