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________________ पुत्र बाबू चन्द्रकुमार थे, जिन्होंने कौशाम्बी में जिनमन्दिर बनवाया था, किन्तु 31 (34) वर्ष की अल्पायु में ही उनका देहान्त ही गया था। सेठ मूलचन्द सोनी-अजमेर के खण्डेलवाल सोनीवंश में उत्पन्न यह एक सम्पन्न, प्रतिष्ठित, उदारमना, विद्वतजनप्रेमी और धर्मिष्ठ सेठ थे। जयपुर के पण्डित सदासुखजी के वह भक्त-शिष्य थे और पुत्र-वियोग से सन्त्रस्त वृद्ध गुरुत्री को 1864 ई. में अपने साथ ले आकर अजमेर में आदरपूर्वक रखा था। आगरा के पण्डित बलदेवदास पाटनी का भी सेठजी बड़ा आदर करते थे और उनके निमन्त्रण पर पण्डितजी बहुधा अजमेर जाते रहते थे। इस न्युम में उमा सोधरने इस इनके समय में विशेष हुआ। महासभा के 1898 ई. के मथुरा अधिवेशन के समय सेठ मूलचन्द्र विद्यमान थे। इसके सुपुत्र राय बहादुर नेमीचन्द्र भी बड़े धर्मात्मा और प्रभावशाली थे। अजमेर की कलापूर्ण सुन्दर सेठों की नशियों का निर्माण सेठ मूलचन्द ने 1864 ई. में प्रारम्भ किया था और सेठ नेमीचन्द्र ने उसे पूरा कराया था। उनके सुपुत्र सयबहादुर टीकमचन्द सोनी भी बड़े धर्मात्मा थे और महासभा के प्रमुखों में से थे। इन्होंने अनेक धर्मकार्य किये। इन्हीं के सुपुत्र वर्तमान सर सेठ भागचन्द सोनी हैं। सेठ विनोदीराम सेठी-झालरापाटन के सेठी घराने के प्रमुख प्रसिद्ध व्यापारी और धर्मात्मा सज्जन थे। इनके सुपुत्र सेठ बालचन्द सेठी उन्नीसवीं शती के उत्तरार्थ में जैन समाज के एक प्रसिद्ध राजमान्य, विद्याप्रेमी और धर्मिष्ठ व्यवसायी थे। विनोदीराम-दालचन्द मिल्स के निर्माता और झालरापाटन में सरस्वती भण्डार के संस्थापक थे। आगरा के पण्डिल बलदेवदास पाटनी के भक्त और उनके शास्त्र-प्रवचनों के प्रमुख श्रोताओं में से थे। पण्डितजी की 'आस्पसार-प्रबोधशतक' पुस्तक उन्होंने ही 1893 ई. में प्रकाशित करायी थी। उक्त पुस्तक में एक रेखाचित्र है जिसमें पण्डितजी शास्त्र-प्रवचन कर रहे हैं और उनके सम्मुख चार श्रोता विनयपूर्वक बैठे सुन रहे हैं, जिनमें से एक पर 'सेठ बालचन्दजी' अंकित है। सेठ बालचन्द के सुपुत्र रायबहादुर लाजिरुल्मुल्क सथा मानिकपुर (झालावाड़ राज्य) के भागीरदार सेठ मानिकचन्द सेठी और सेठ नैमिवन्द सेठी झालरापाटन बम्बई आदि के ऐल्लक-पन्नालाल-सरस्वती-भण्डारों के संस्थापक, धर्म और विधाप्रेमी यह सेठी बन्धु रहे हैं। सेठ माणिकचन्द जे.पी. (1851-1914 ई.)-मेवाड़देश के भीडर राज्य के निवासी मन्त्रेश्वरगोत्री बीसाहूमड़ शाह गुमानजी 1783 ई. में जन्मभूमि को छोड़कर सूरत नगर में आ बसे थे और वहीं उन्होंने अफ़ीम का अपना पैतृक व्यापार शुरू कर दिया। यह धार्मिक एवं सात्त्विक वृत्ति के पुरुषार्थी व्यक्ति थे। हीराचन्द और बखतचन्द इनके दो पुत्र हुए। साह हीराचन्द ने व्यापार में अच्छी उन्नति की और समाज में भी अच्छी प्रतिष्ठा बना लो 1 उन्हीं के प्रयत्न एवं सक्रिय सहयोग से सूरत आधुनिक युग : अँगरेजों द्वारा शासित प्रदेश :: 981
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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