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________________ शिष्य पण्डित परमसुख एवं पण्डित भागीरथ के उपदेश से उक्त सिद्धक्षेत्र सोनागिरि पर समारोहपूर्वक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करायी थी। कहते हैं कि दतिया के राजा ने, जिसके राज्य में सोनागिरि स्थित था, इसकी वेशभूषा देखकर इन्हें साधारण बनिया समझ उपेक्षा की तो इन्होंने मिट्टी के बर्तनो, दोना, पत्तलों आदि से ही भरकर सैकड़ों दैलगाड़ियों का तांता लगा दिया। राजा को मूल मालूम हुई, खेद प्रकट किया और पूर्ण सहयोग का वचन दिया। सभासिंह बोले, 'महाराज मैं तराजू तोलनेवाला बनिया नहीं हैं, मैं तो राजा-रईसों को तोलता हूँ।' इन्होंने सोनागिरि में एक मन्दिर बनवाया था और 1836 ई. में सोनागिरि के भट्टारक हरचन्द्रभूषण के उपदेश से चन्देरी में सुप्रसिद्ध चौबीसी-मन्दिर बनवाया, जिसमें चौबीस गर्भगृह हैं और प्रत्येक में एक-एक तीर्थंकर की पुराणोक्तवा (दो श्याम, यो हरित, दो खत और सोलह तप्तस्वर्ग) की समान माप की, प्रायः पुरुषार, पदासन, पापमयी, कलापूर्ण एवं मनोज्ञ प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की। मन्देरी की यह चौबीसी अभूतपूर्व है। कहते हैं कि अपनी प्रतिष्ठा में उन्होंने ही सर्वप्रथम गजरथ चलाया था और संघाधिपति या सिंघई उपाधि प्राप्त की थी। तभी से बुन्देलखण्ड में यह प्रथा चली। सन्देरी को लेकर वर्षों से बुन्देलों और मराठों का विग्रह चल रहा था, जिसका अन्त 1836 ई. को सन्धि द्वारा हुआ और सन्धि के कराने में चौधरी फतहसिंह के प्रतिनिधि यह सभासिंह प्रमुख थे। बाबू शंकरलाल-आसमनगर (आरा) नियासी, भट्टारक महेन्द्रभूषण की आम्नाय के, कनिल (कंसल) गोत्री अग्रवाल जैन साह दशनावरसिंह के पुत्र थे। स्वयं इनके रतनचन्द्र, कीर्तिचन्द, गुपालनन्द और प्यारीलाल नाम के चार पुत्र थे। अगरेजी राज्य था, जब 1819 ई. में उस कारुध्यदेश (विहार का भोजपुरी प्रदेश) के मसादनगर के जिनमन्दिर में इन बाबू शंकरलाल ने अपने चारों पुत्रों सहित भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। साहु होरीलाल-प्रयाग (इलाहाबाद) निवासी, काष्ठासंधी भट्टारक ललितकीर्ति की आम्नाय के, गोयलगोत्री अग्रवाल-जैन सेठ रायजीमल के अनुज फेरूमल के पौत्र, मेहरचन्द और सुमेरचन्द के भतीजे तथा माणिकचन्द के पुत्र साहु होरीलाल ने अँगरेजबहादुर के राज्य में कौशाम्बीनगर के बाहर जिनेन्द्र पद्यप्रभु के दीक्षा-कल्याणक स्थल प्रभास-पर्वत पर 4824 ई. में पार्श्वनाथ-प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थी। सालिगराम खजांची-राजा रामसिंह के पुत्र और सहारनपुर नगर के संस्थापक साहरनवीरसिंह के वंशज थे और दिल्ली के अँगरेज़ अधिकारियों द्वारा 1625 ई. में सरकारी खजांची नियुक्त हुए थे, साथ ही ग्वालियर एवं अलवर राज्यों के भी खजांची थे। उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके पुत्र धर्मदास भी सरकारी खजांची रहे। मधुस के सेठ-मुर्शिदाबाद (बंगाल) के जगत्-सेठों का जिस काल में प्रायः नामशेष हो रहा था, उसी के लगभग पथुरा के सेठ धराने का उदय प्रारम्भ हुआ। 378 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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