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________________ १E सांगानेर, सोनागिरि आदि स्थानों में इन सेटों ने सुन्दर जिन-मन्दिर बनवाये थे। अवध के नवाब वाजिदअली शाह ने सेठ सुगनचन्द्र का एक विशाल स्वजटित चित्र बनवाकर उन्हें भेंट किया था। चौधरी हिरदैसहाय-राजस्थान के किशनगढ़ राज्य के चौधरी रत्मपाल नामक जैन सामन्त अपने राजा से किसी कारण रुष्ट होकर बुन्देलखण्ड के चन्देरी नगर में आ बसे थे। कुछ का कहना है कि वह जयपुर राज्य के हिण्डौन नगर से आये थे। चन्देरी (चन्द्रगिरि, चन्द्रवती या चन्द्रावती) चन्देलकालीन प्राचीन नगर था और इस काल में वीरसिंह बुन्देले के भाई रामशाह के वंशज धुन्देले राजपूतों के एक छोटे-से राज्य की राजधानी थी। रत्नपाल बोहरागोत्री खण्डेलवाल जैन थे और चन्देरी के राजा की सेवा में नियुक्त हो गये थे, तथा उसे प्रसन्न करके उन्होंने उससे जागीर भी प्राप्त की थी। उनके दो पुत्र थे जिनमें छोटा ताराचन्द मुसलमान होकर सम्राट औरंगजेस झा कृपापात्र हो गया और वन्देरी का फौजदार नियुक्त हो गया, किन्तु निस्सन्सान ही मर गया। उसके बड़े भाई के वंशज चन्देरी के बुन्दले ठाकुरों के चौधरी चलते रहे। इनमें 19वीं शती के प्रारम्भ के लगभग चौधरी हिरदेसहाय हुए जिनकी 'चौधरी' के अतिरिक्त 'सवाई' और 'राजधर' उपाधियों भी थीं। जब 1806 ई. में दौलतराव सिन्धिया ने चन्देरी पर अधिकार कर लिया तो उसने भी इन्हें इनके पैतृक पाद पर प्रतिष्ठित रखा और नयी जागीरें भी दीं । फतहसिंह और मर्दनसिंह सम्भयतया हिरदैसहाय के छोटे भाई या पुत्र थे और इनके साथ इनके राजकीय कार्यों में योग देते थे। फतहसिंह तो शायद फौजदार भी नियुक्त हो गये थे। इस चौधरी परिवार के कार्यवाहक (कारिन्दा या गुमाश्ता) लाला सभासिंह थे, जिन्होंने 1816 से 1835 ई. के बीच अनेक धर्मकार्य एवं निर्माण किये। उनमें भी इन चौधरियों का पूरा सहयोग था। स्वर्ण चौधरी हिरदैसहाय ने रामनगर में एक महान् पूजोत्सब पर्व रथोत्सव करावा बताया जाता है। सिंघई सभासिंह अजगोत्री खण्डेलवाल जैन घे और चन्देरी के चौधरी सवाई राजधर, हिरसहाय तथा चौधरी फतहसिंह और चौधरी मर्दनसिंह के प्रधान कारकुन थे। इनकी धर्मपत्नी का नाम कमला था और यह बड़े कार्यकुशल, उदार और धर्मोत्साही थे। इन्होंने 1816 ई. में चन्देरी से आठ मील दूर अतिशयक्षेत्र यूयॉलजी (तपोवन) में एक विशाल जिनमन्दिर बनवाया था जिसमें भगवान आदिनाथ की देशी पाषाण की 35 फुट उत्तुंग खगासन प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। उस प्रतिमा पर अंकित लेख में दौलतराव सिन्धिया, उसके फिरंगी सेनापति कर्नल जीन बौष्टिस्ट, चौधरी सवाई राजधर हिरदैसहाय, चौधरी फतहसिंह, उनके गुमास्ते इन सभासिंह और उनकी भार्या कमला के नाम अंकित हैं। यह मुलसंघ-सरस्वतीगधा-बलात्कारगणकुन्दकन्छाम्नाय के अनुयायी थे। इन्हीं समासिंह ने 1827 ई. में ग्वालियर के भट्टारक सुरेन्द्रभूषण के अधीन सोनागिरि (स्वर्णगिरि, श्रमणगिरि) के भष्ट्रारक विजयकीर्ति के आधुनिक युग : अँगरेशों द्वारा शासित प्रदेश :: 373
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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