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________________ wity .... AKATRE आधुनिक युग : अँगरेजों द्वारा शासित प्रदेश जगत्सेठ शुगनचन्द मुर्शिदाबाद घराने के बंगाल के सुप्रसिद्ध जगतसेठ फतहबन्द के पुत्र या पौत्र जगतसेठ शुमनचन्द 1765 ई. में विद्यमान थे। उसके पश्चात् वह कितने वर्ष और जीयित रहे तथा उनके वंशजों के सम्बन्ध में निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है, क्योंकि उस समय के कुछ ही वर्षों के भीतर इस प्रसिद्ध सेट वंश का पतन हो गया। शुगनचन्द के पुत्र या पौत्र सम्भवतया डालचन्द थे, जिनका मुर्शिदाबाद के नवाब से कुछ झगड़ा हो गया, और वह जन्मभूमि का त्याग करके वाराणसी में आ बसे । उनकी धर्मपत्नी बीबी रतनकुँवर (जन्म 1777 ई.) का मायका भी मुर्शिदाबाद में ही था। बह बड़ी दिदुषी एवं श्रेष्ठ कवयित्री थी और उन्होंने 'प्रेमरल' नामक काव्य ग्रन्थ की रचना की थी। शाह मानिकचन्द-मंगगोत्री औसवाल शाह बुलाकीदास के पुत्र और हुगली नगर के निवासी थे। इन्होंने 1772 ई. में राजगृह (राजगिरि) के रत्नगिरि पर्वत पर स्थित प्राचीन मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया था और यहाँ पार्श्वनाथ भगवान के कमल सदृश चरण-युगल (चरण-चिहों) की स्थापना की थी। कटक के मंजु चौधरी बुन्देलखण्ड के झाँसी जिले की महरौनी तहसील में स्थित कुम्हेडी अपरनाम चन्द्रापुरी ग्राम में 1720 ई. के लगभग एक अति साधारण स्थिति के परवार जातीय जैन परिवार में मंजु का जन्म हुआ था। बाल्यावस्था में ही माता-पिता का निधन हो गया। शिक्षा दीक्षा कर हुई नहीं थी और जो कुछ घर में था, जए के खेल में समाप्त कर दिया । नाते-रिश्तेदारों ने कोई सहारा नहीं दिया, किन्तु हींग आदि के यणिज-व्यापार के लिए दूर-दर परदेशों में जानेवाले कम्हेडी के बनजारों का रक्त नसों में प्रवाहित था, साहस की कमी न थी। अतएच भाग्यपरीक्षा के लिए अकेले ही पाव पादे परदेश के लिए निकल पड़े। मार्ग में मेहनत-मजदूरी करते और एक दिन के अन्तर से दूसरे दिन केवल दो रूखी रोटी ख़ाकर महीनों निर्वाह करते हुए 37b :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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