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ई. में उक्त सेठ फतहचन्द के छोटे पुत्र जगन्नाथ की प्रेरणा से उसी के प्रबोध के लिए की थी। इसी समय के लगभग उन्होंने महावीरजी क्षेत्र ( जयपुर राज्य का चाँदनगाँ श्री संक सकी।
सागवाड़ा के महारावल
वाग्वर (बागड़) देश का शाकपत्तनपुर (शाकबाट, सागवाड़ा) जैनधर्म का केन्द्र मध्यकाल के प्रायः प्रारम्भ से ही रहता आया है और 13वीं शती से तो वहाँ भूल संघी भट्टारकों की गद्दी भी चली आ रही है। सागवाड़ा के महारावल जसवन्तसिंह ने 1836 ई. में सागवाड़ा के नोगामी आटेकचन्द्र सुखचन्द तथा अन्य समस्त जैन महाजनों के आवेदन पर दो आज्ञापत्र ( परवाने) जारी किये थे जिनमें से एक के अनुसार राज्य के समस्त घानिकों को आदेश दिया गया था कि अपने कोल्हू और घानियाँ प्रत्येक पक्ष की द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशी तिथियों में बन्द रखेंगे, क्योंकि उनके चलाये जाने में हिंसा होती है। दूसरे परवाने के अनुसार राज्य के समस्त कलवारों (कलालों) को आदेश दिया गया था कि प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशी को वे अपनी शराब निकालने की भट्टियाँ बन्द रखेंगे, क्योंकि उनके कार्य में जीवहिंसा होती है। आज्ञा का उल्लंघन करने का दण्ड 250 रुपये जुर्माना निर्धारित किया गया। महारावल उदयसिंह ने जो सम्भवतया जसवन्तसिंह के उत्तराधिकारी थे, साह माणकदास नोगामी, आदलीचन्द आदि सागवाड़ा के समस्त जैन महाजनों को प्रार्थना पर यह आदेशपत्र 31 अगस्त 1854 ई. के दिन जारी किया था कि भाद्रपद मास में पर्यापण के 18 दिनों में अर्थात् भाद्रपद कृष्ण द्वादशी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी पर्यन्त राज्य भर में कोई भी व्यक्ति जीवहिंसा नहीं करेगा। बैलों आदि पर बोझ लाना और इन पशुओं को समय पर दाना-पानी न देना भी हिंसा में सम्मिलित किये
गये ।
इस प्रकार के राजकीय परवाने अन्य अनेक राजपूत राज्यों और ठिकानों में यदा-कदा प्रचारित होते रहते थे।
आधुनिक युग देशी राज्य : 369