SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिथ्या आरोप लगाकर उन्हें बन्दीगा में डाल दिया गया। यह महाराज जयसिंह के प्रसिद्ध महामन्त्री मोहनदास के वंशज थे। संधी हुकुमचन्द-यह दीवान संधी झंथाराम के बड़े भाई थे और उन्हीं के साथ साथ 1824 से 181.4 ई. तक राज्य के दीवाने है। इनके पूर्वजों में महाराज जयसिंह के मुख्य मन्त्री मोहनदास के उपरान्त और भी कई व्यक्ति राज्य के दीवान रहे थे। संधी हुकुमचन्द सेना के मुसाहब थे और इन्हें राव बहादुर की उपाधि मिलो थी। सम्मक्तया शृंथाराम के साथ ही यह भी पदच्युत हुए। उन्होंने लक्ष्मण दूंगरी के निकट तीन नशियों के स्थान पर एक विशाल जिनमन्दिर बनवाया था जो संघीजी की नशियों के नाम से प्रसिद्ध है। विरधीचन्द-~संधी हुकमचन्द के पुत्र थे और अपने पिता के समय में ही उन्होंने लगभग तीन वर्ष दीवानगीरी की थी। चम्पाराम भी इसी समय के लगभग जयपुर राज्य के दीवान थे, किन्तु शायद कारणवश पद का त्याग करके वृन्दावन में जाकर रहने लगे थे। इन्होंने 1825 में मूर्तिपूजा-पोषक जैन-चैत्य-स्तव की रचना की थी और 1826 ई. में वृन्दावन के घरगराम से उसकी प्रतिलिपि करायी थी। उनके भानजे लालजीमल ने तो पुस्तक की प्रति उसकी रचना के दो मास बाद ही करा ली थी। अमोलकचन्द खिन्दूका-दीवान नोनदराप के पुत्र थे और 1825 से 1829 ई. तक राज्य के दीवान रहे। सम्पतराम खिन्दूका-दीवान आरतराम के पौत्र थे और 1834 से 1899 ई. तक राज्य के दीयान रहे। मानकचन्द ओसवाल-1849 से 1855 ई. तक राजा के दीवान थे। मुंशी प्यारेलाल कासलीवाल-जयपुर राज्य में कई उच्च पदों पर रहे और 1919 से 1922 ई. पर्यन्त तीन वर्ष राज्य के राजस्व मन्त्री रिवेन्यु मिनिस्टर) रहे। भरतपुर राज्य संघई फतहचन्द- भरतपुर में जाटों का राज्य था, जिसने राजा सूरजमल के समय में बड़ी उन्नति की। उस काल में भरतपुर में चाँदुवाइगोत्री संघई केशोदास के पुत्र संघई मयाराम राज्य के पोतदार (खजांची) और महाराज के मोदी थे। उनके पश्चात् उनके ज्येष्ठ पुत्र संघई फतहचन्द उन पर्दी पर रहे। फतहछन्द के छोटे भाई पृथ्वीराज थे और जसरूप एवं जगन्नाथ नाम के दो पुत्र थे। सेठ फतहबम्द के आश्रित एवं सहायक पोतदार पण्डित मधमल विलाला थे। इनके पितामह साह जेठमल आगरे के जैसिंहपुर मोहल्ले में रहते थे और पिता सोमाचन्द एवं बचा गोकलचन्द भरतपुर में आ बसे थे। नथमल विलाला ने 1767 से 1778 ई. पर्वन्स अनेक ग्रन्थों की रचना की थी। इनमें से सिद्धान्तसारदीपक की रचना इन्होंने 1787 36A :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy