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7282424 में दीवान रहे। वह राजस्व वसूली के कार्य में अतिदक्ष थे. संस्कृत भाषा और ज्योतिषशास्त्र के भी विद्वान थे। इनकी हवेली के सामने का मार्ग आज भी 'श्योजीलाल का रास्ता' कहलाता है।
बखतराम-यह भी राजा जगतसिंह के समय में दीवान थे। जयपुर के चौड़े रास्ते में यशोदानन्दजी का जैनमन्दिर इन्होंने बनवाया था।
मन्नालाल छाबड़ा-दीवान रापचन्द छावड़ा के पुत्र थे और 1809 से 1812 ई. तक राज्य में दीवान रहे।
कृपाराम छाबड़ा-दीवान रामचन्द छाबड़ा के भतीजे थे और 1812 से 1818 ई. तक राज्य के दीवान थे। यह कुशल नीतिज्ञ और उच्चकोटि के सैन्य प्रशासक थे। राज्य के लिए इन्होंने एक बड़ी और शक्तिशाली सेना संगठित की थी, जिसमें दस हजार अच्छे सैनिक थे। इसी सेना को लक्ष्य करके कर्नल दाइ ने लिखा है कि जगतसिंह के पास जितनी और जैसी सेना थी, किसी अन्य जयपुर नरेश के पास नहीं रही। शेखावटी प्रदेश के असन्तुष्ट सामन्तों को वश में करने के लिए दीवान रामचन्द ने इन्हें वहाँ भेजा था और इन्होंने बड़ी नीतिमसा के साथ सामन्तों का असन्तोष दूर करके उन्हें वश में कर लिया था। कृपाराम के पुत्र शिवजीलाल भी कुछ समय तक दीवाम रहे।
लिखमीचन्द्र छाबड़ा-दौसा निवासी जीवनराम छाबड़ा के पुत्र थे और 1812 से 1817 ई. तक राज्य में दीवान रहे।
नोनदराम बिन्दूका दीवान आरतराम खिन्दूका के पात्र थे और 1837 से 1824 ई. तक राज्य के दौवान रहे।
लिखमीचन्द्र गोधा-भगतराम गोधा के पुत्र थे 1 यह भी 1817 से 1824 ई. तक दीवान रहे।
संधी अँधा राम-1824 से 1834 तक जयपुर राज्य के दीवान थे। यह कुशल राजनीलिज्ञ, प्रतिभाशाली, सूझबूझावाले, दृढनिश्चयी राजपुरुष और कठोर प्रशासक थे। साथ ही स्थदेशभक्त एवं स्वतन्त्रताप्रेमी भी थे। इस युग में देशी राज्यों में अँगरेज लोग अपने पैर जमा रहे थे। और उचित-अनुचित हस्तक्षेप करते रहते थे। संघीजी नहीं चाहते थे कि राज्य अँगरेजों की दासता की बेड़ियों में जकड़ जाए। अगरेजों को धन देकर चे उनके अनुचित हस्तक्षेप से राज्य की रक्षा करते रहे। राज्य की अरक्षित सीमाओं की सुरक्षा का भी उन्होंने प्रबन्ध किया और शेखावटी प्रान्त को भी, जो काबू से बाहर होता जा रहा था, वश में रखने का प्रयल किया। किन्तु भारत में और विशेषकर देशी राज्यों में यह एक ऐसा सार्वभौमिक नैतिक पतन और स्वार्थपरता का युग था कि जब कोई सम्स्य ईमानदार देशभक्त और कुशल सजमन्त्री होता उसके अनेक विरोधी और शत्रु उत्पन्न हो जाते और उसके पतन के लिए षड्यन्त्र होने लगते । ऐसे ही षड्यन्त्रों का शिकार दीवान अथासम संधी पी हरा और
आधुनिक युग : देशी राज्य :: 367