________________
रामचन्द (रायचन्द ) छाबड़ा - दीवान बालचन्द छाबड़ा के तृतीय पुत्र और दीवान जयचन्द छाबड़ा के छोटे माई थे और बड़े वीर, कुशल राजनीतिज्ञ, धर्मात्मा एवं प्रभावशाली व्यक्ति थे। उदयपुर के राणा भीमसिंह की सुन्दरी कन्या कृष्णकुमारी के सम्बन्ध को लेकर जयपुर नरेश जगतसिंह और जोधपुर नरेश मानसिंह में संघर्ष हुआ तो दीवान रामचन्द्र ने जोधपुर के दीवान इन्द्रराज सिंघवी से मिलकर उसे शान्त करने का भरसक प्रयत्न किया था। किन्तु जोधपुर और जयपुर के कुचक्री सामन्तों ने जगतसिंह को उकसाकर जोधपुर पर आक्रमण करा दिया। दीवान भी राजा के साथ थे और परामर्श दिया था कि जोधपुरवालों से न उलझकर उदयपुर चले चलें और राजकुमारी कर कपुरकी पाकर इन्द्रराज और अमीरखाँ पिण्डारी ने जयपुर पर आक्रमण कर दिया। अब दीवान ने सलाह दी कि जयपुर चलकर पहले अपनी राजधानी की रक्षा करें। राजा चला तो किन्तु सेना थकी हुई थी, अतएव दीवान रामचन्द ने एक लाख रुपया देकर आक्रमणकारियों से पिण्ड छुड़ाया। दीवान रामचन्द (रायचन्द ) बड़ी धार्मिक वृत्ति के भी थे। उन्होंने अनेक यात्रासंघ चलाकर 'संघई' उपाधि प्राप्ति की और दो लाख रुपये की लागत से जयपुर में तीन सुन्दर जिनमन्दिर बनवाये तथा 1804 ई. में एक बहुत भारी बिम्ब-प्रतिष्ठा करायी, जिसमें प्रतिष्ठित सहस्रों प्रतिमाएँ उत्तर भारत के जिनमन्दिरों में दूर-दूर तक पहुँचीं। यह प्रतिष्ठा आमेर के भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति के उपदेश से सम्भवतया उन्हीं के द्वारा करायी गयी थी। जूनागढ़ में भी उन्होंने प्रतिष्ठा करायी बतायी जाती है। रामचन्द के एक बड़े भाई हरिश्चन्द्र थे और दो छोटे भाई विष्णुचन्द और कृष्णचन्द थे, तथा उनकी अपनी भार्या का नाम रायादे था। राजा जगतसिंह रसिक प्रकृति का विलासी व्यक्ति था। रसकपूर नामक वेश्या पर अत्यधिक अनुरक्त था । श्याम तिवारी का एक वंशज शिवनारायण मिश्र अपने पूर्वज के अपमान का बदला भूतपूर्व दीवान बालचन्द छाबड़ा के पुत्र ( रामचन्द्र के भतीजे) रूपचन्द से लेना चाहता था। वह उस गणिका का भाई बनकर राजा का कृपापात्र बना और अवसर देखकर एक दिन नशे में चूर राजा से आज्ञा दिला दी कि दीवान रामचन्द की पकड़कर जयगढ़ के किले में भेज दिया जाए और जीवित न आने दिया जाए। जब राजा को होश आया तो वह पछताया और दीवान को तुरन्त लाने की आज्ञा दी, किन्तु अपनी बात रखने के लिए यह भी कह दिया कि पहाड़ी के पीछे की ओर से रस्से के द्वारा उसे बाहर निकाल लाया जाए। किन्तु शत्रु यहाँ भी लगे थे। जब दीवान रस्से के सहारे उतर रहा था तो रस्से को बीच में हो काट दिया गया और इस प्रकार 1807 ई. में उस धर्मात्मा दीवान रामचन्द की अपमृत्यु हुई। इन्होंने अपने समकालीन पण्डित जयचन्द छाबड़ा को जीविकोपार्जन आदि अर्थचिन्ता से सर्वथा मुक्त करके सर्वार्थसिद्धि-वचनिका जैसे ग्रन्थों की रचना करायी थी।
श्योजीलाल छाबड़ा चैनराम छाबड़ा के पुत्र थे और 1808 ई. तक राज्य
366 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ